SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 263
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अगारधर्म सञ्जीवनी टीका अ० 1 0 12 आनंद व्रताङ्गीकार प्रतीज्ञा 247 मूलम्- तए णं से आणंदे गाहावई समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्म सोच्चा निसम्म हट्तुह जाव एवं वयासीसदहामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, पत्तियामि णं भंते! निग्गंथं पावयणं, रोएमि णभंते! निग्गंथं पावयणं, एवमेयं भंते! तहमेयं भंते !अवितहमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते ! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते ! से जहेयं तुब्भे वयहत्ति कटु, जहा णं देवाणुप्पियाणं अंतिए बहवे राई-सर-तलवरमाडंबिय-कोडुंबिय-सेट्रि-सेणावइ-सत्थवाह-प्पभिइया मुंडा भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइया, नो खलु अहं तहा संचाएमि मुंडे जाव पव्वइत्तए / अहणणं देवाणुप्पियाणं अंतिए पंचाअगारधर्मः गृहस्थधर्मः। श्रमणोपासकः श्रावकः, श्रमणोपासिका श्राविका। शिष्टा अनगारधर्मनिरूपणपकरणे व्याख्याताः // इति सूत्रार्थः // 11 // / इति संलेखना।। / इति सामान्यबिशेषात्मकोऽगारधर्मः / ।इति धर्मकथा। हुए कहते हैं-बस, यही गृहस्थ धर्म है, इसमें उद्यमवान् श्रावक या श्राविका भगवानकी आज्ञाका आराधक होता है। सू० // 11 // / इति संलेखना। / इति सामान्य विशेषात्मक अगारधर्म समाप्त / इति धर्मकथा. બસ એજ પ્રહસ્થને ધર્મ છે. એમાં ઉદ્યમવાન શ્રાવક યા શ્રાવિકા ભગવાનની અજ્ઞાનાં આરાધક થાય છે. (સૂ) 11) ઈતિ સંલેખના. ઈતિ સામાન્ય-વિશેષાત્મક અગારધર્મ સમાપ્ત. ઈતિ ધર્મકથા. ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર
SR No.006335
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages587
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size30 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy