________________ अगारधर्मसञ्जीवनी टीका धर्म संलेखनाव्रतवर्णनम् 245 गचा पोसहसालाए, उजाणे वा गिहेवि वा। पमजिऊण विहिणा, भूमि सप्पडिलेहणं // 3 // दभाइआसणासीणो तओ पुव्युत्तरामुहो / बंधिऊण मुहे सडो, सदोरं मुहवत्थियं // 4 // नमिऊण जिणं सिद्धं, धम्मायरियमेव य / करणेहिं च जोएहिं, ताहिं चत्तारि सव्वहा // 5 // आहारे पडियाइक्खे, पावट्ठारहगं तहा / समाहिपुव्वगं सेसं, कालं च खवए सुही // 6 // उवसग्गे उ संथारो, सागरो पसमावही / अप्पसंते उ एयस्मि, धरिज्जो जीवणावही // 7 // इति / .. गत्वा पोषधशालाया,-मुद्याने वा गृहेऽपि वा। प्रमृज्य विधिना भूमि समतिलेखनम् // 3 // दर्भाधासनासीनस्ततः पूर्वोत्तरामुख H / बद्ध्वा मुखे श्राद्धः, सदोरां मुखवत्रिकाम् // 4 // नत्वा जिनं सिद्धं, धर्माचार्यमेव च / करणैश्च योगैस्त्रिभिश्चतुरः सर्वथा // 5 // आहारान प्रत्याचक्षीत, पापाष्टादशकं तथा। समाधिपूर्वकं शेषं; कालं च क्षपयेत् सुधीः // 6 // उपसर्गे तु संस्तारः, साकारः प्रशमावधिः अप्रशान्ते त्वेतस्मिन् धरणीयो जीवितावधिः // 7 // " इति / यत्र काप्येकान्ते स्थले गत्वा तत्स्थानं सविधिप्रतिलेख्य प्रमाय॑ च दर्भासनादिषु पूर्वाभिमुख उत्तरााभमुखो वा मुखबद्धसदोरकमुखवस्त्रिकः पद्मासनादिनोपविश्य भगवन्तं सिद्धमहन्तं धर्माचार्य च सविधि नमस्कृत्य त्रिभिः करणैत्रिभिर्योगैश्च दुर्बल करे, इसके पश्चात् पोषधशाला, उद्यान, गृह या अन्य किसी एकान्त स्थान में जाकर, उस स्थानको विधिपूर्वक पडिलेह कर तथा पूंज कर, कुश आदिके आसन पह पूर्वदिशा या उत्तरदिशाकी ओर मुंह करके, डोरा सहित मुखवस्त्रिका मुँह पर बांध कर, पद्मासन आदिसे પષધશાળા, ઉદ્યાન ગ્રહ, યા અન્ય કઈ એકાન્ત સ્થળે જઈને એ સ્થાનને વિધિપૂર્વક પડિલેહણ કરે તથા પૂજે, કુશ આદિના આસન પર પૂર્વ દિશા યા ઉત્તર દિશાની તરફ મોં કરી દેરાસહિત મુખવસ્ત્રિકા માં પર બાંધીને પદ્માસન આદિ ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર