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________________ उपासकदशाङ्गसूत्रे सद्रूपमपि सर्वथा वक्तुमशक्यं, विधिमुखेन प्रतिपादने निषेधस्य निषेधमुखेन प्रतिपादने च विधेरवगमाभावमसङ्गात्तस्मादेवंविधस्थले 'अवक्तव्य'-शब्दप्रयोग एव वृद्धसिद्धान्त इत्यतः 'कथञ्चिदवक्तव्य एवायं घटः' इत्यादिरूपो यो वचनप्रकारः स चतुर्थो भङ्गः (४)। एषु चतुर्यु भङ्गेषु मूलभूतो केवलविधिगर्भकेवलनिषेधगौं प्रथम-द्वितीयौ, शेषौ तु द्वौ तदुभयभङ्गसम्बन्धादेव स्तः, इयास्तु विशेषः-यत्तृतीयो भङ्गः-प्रथमद्वितीयभङ्गोक्तौ विधि-निषेधौ क्रमेणाऽऽश्रित्य प्रवर्त्तते, चतुर्थस्तु यौगपद्येनैवेति॥ स्वद्रव्यक्षेत्रकालभावावपेक्ष्य सद्पं (घटपटादिरूपं ) सर्व वस्तु योगपद्येन विधि-निषेधौ परिकल्प्यावक्तव्यमपीत्येवं वाकप्रयोगः पञ्चमो भङ्गः (५) । दोनों धर्मोंको वचन द्वारा नहीं कह सकते। 'हैं' कहें तो उससे 'नहीं' का कथन नहीं होता, और 'नहीं' कहें तो उससे 'है' का कथन नहीं होता। इसके अतिरिक्त ऐसा कोई भी शब्द नहीं है जिससे अनेक धर्मोंका एक साथ प्रतिपादन किया जा सके, इस अपेक्षासे घटको अवक्तव्य कहा है। यहां अस्तित्व और नास्तित्व दोनो धर्मोंकी युगपत् विवक्षा है। यही चौथे भंगका आशय है। ... इन चार भंगोंमेसे केवल विधि-प्रतिपादक पहला, और केवल निषेध-प्रतिपादक दूसर। भंग ही मूल भंग है। तीसरा और चौथा भंग इन्हीं को क्रमशः और युगपत् मिलाने से बना है। (५) स्व-द्रव्य क्षेत्र काल भावसे वस्तु (घट) सत् और युगपत् विधि-निषेध के साथ विवक्षित होने पर अवक्तव्य रूप होती है। यह पांचवा भंग है। नथी ही शाdi. 'छ' ही तो तथा नथी' नुं थन नथी तु. मने नथी' કહીએ તે તેથી “છે નું કથન નથી થતું. તે સિવાયને એ કઈ પણ શબ્દ નથી કે જેનાથી અનેક ધર્મોનું એકી સાથે પ્રતિપાદન કરી શકાય, એ અપેક્ષાએ ઘટને અવકતવ્ય કહ્યો છે. અહીં અસ્તિત્વ અને નાસ્તિત્વ એ બેઉ ધર્મની યુગપત વિવક્ષા छ. से यथा मांगना भाशय छे. આ ચાર ભાંગામાંથી કેવળ વિધિ-પ્રતિપાદક પટેલે અને કેવળ નિષેધ-પ્રતિપાદક બીજો ભાગ જ મૂળ ભાંગા છે. ત્રીજે અને એથે ભાગે એ બેઉને ક્રમશ: અને યુગપત મેળવવાથી બન્યા છે. (५) २१-०यक्षेत्रासावी वस्तु (३८) सत छ भने युगपत विधि-निषेधनी સાથે વિવક્ષિત થવાથી અવકતવ્ય રૂપ થાય છે. આ પાંચમે ભાંગે છે. ઉપાસક દશાંગ સૂત્ર
SR No.006335
Book TitleAgam 07 Ang 07 Upashak Dashang Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1961
Total Pages587
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_upasakdasha
File Size30 MB
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