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________________ ३१० ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे ___ अकुतोभयं' इत्यस्य-" अणुपालिज्जा" इत्यनेनान्वयाद् अकुतोभयंसंयमम् अनुपालयेदित्यपि भगवदाज्ञैव, तथा च संयमस्याऽऽराध्यतया विधानात् संयमस्य धर्मत्वं बोध्यम् । अपरं च-उत्तराध्ययनसूत्रो-"धम्माणं कासवो मुहं " इत्युक्तम् " धम्माणं" धर्माणां श्रुतधर्माणां चारित्रधर्माणां च "कासपो" काश्यपः काश्यपगोत्रीयः श्रीमहावीरवर्धमानस्वामी " मुहं " मुखं वक्ता वर्तते । अहिंसादौ खलु भगवतोऽर्हत आज्ञा वर्तते, पश्यागमेषु । यथा-आचाराङ्गसूत्रे " से बेमि-जे य अतीता, जे य पडुप्पन्ना, जे य आगमिस्सा अरहता भगवंतो, ते सव्वेवि एवमाइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णवेति एवं परूवेति'अकुतोभयं' इस पद का “ अणुपालिजा" इस क्रियापद के साथ अन्वय करने से यह अर्थ होता है कि अकुतोभयरूप संयम का पालन करना चाहिये, यह भी जब भगवान को आज्ञा ही है तो इससे यह बात स्पष्ट हो जाती है कि भगवान को आज्ञा से संयम आराधन करने लायक होने से धर्म रूप है । अपरं च-उत्तराध्ययन सूत्र में " धम्माणं कासवो मुहं " यह कहा है इसका भाव यह है कि श्रुत एवं चारित्र धर्मों के मुख-वक्ता-काश्यय गोत्रीय श्री महावीर वर्धमान स्वामी हैं । देखो उन्हों ने आगमों में अहिंसादिक महाव्रतों के पालने का मुमुक्षुओं मोक्षाभिलाषियों के लिये इस प्रकार आज्ञा प्रदान की है "से बेमि-जे य अतीता जे य पडुप्पन्ना जे य आगमिस्सा अरहंता भगवंतो ते सव्वे वि एचमाइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णवेति एवं परुति" सव्वे 'अकुतोभय' मा ५४ने। ' अणुपालिज्जा' 21 यापहनी साथे ४२વાથી આ પ્રમાણે અર્થ થાય છે કે અકુતભય રૂપ સંયમનું પાલન કરવું જોઈએ. આ પણ ભગવાનની જ આજ્ઞા છે તો એનાથી આ વાત સ્પષ્ટ થઈ જાય છે કે ભગવાનની આજ્ઞાથી “સંયમ” આરધવા ગ્ય હોવાથી ધર્મરૂપ ७. मन वजी 'त्तध्ययन सूत्र 'भा “ धम्माणं कासवो मुहं" मा प्रमा. શેનો ઉલ્લેખ છે. એને અર્થ એમ થાય છે કે શ્રત અને ચારિત્ર ધર્મોના મુખ્ય-વકતા-કાશ્યપ શેત્રીય શ્રી મહાવીર વર્ધમાન સ્વામી છે. તેઓશ્રીએ અહિંસા વગેરે મહાવ્રતના પાલન કરનારા મેક્ષ ઈચ્છનારા લોકોને માટે આગમમાં આ જાતની આજ્ઞા કરી છે કે – “से बेमि-जे य अतीता जे य पडुवन्ना जे य आगमिस्सा अरहता भगवंतो ते सव्वे वि एवमाइक्खंति एवं भासंति एवं पण्णवे ति एवं' परूवेति सन्दे श्री शताधर्म थांग सूत्र :03
SR No.006334
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages867
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size50 MB
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