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________________ २६८ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे टीका-'तएणं से ' इत्यादि । ततः खलु स कृष्णो वासुदेवः कौटुम्बिकपुरुष शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवादी-गच्छ खलु त्वं हे देवानुप्रिय ! सभायां सुधर्मायां ' सामुदाइयं ' सामुदायिकिं भेरि ताडय, ततः खलु स कौटुम्बिकपुरुषः करतल० यावद्-मस्त केऽञ्जलिं कृत्वा यावत् कृष्णस्य वासुदेवस्यैतमर्थ प्रतिशणोति, प्रतिश्रुत्य यौव सभायां सुधर्मायां 'सामुदाइया' सामुदायिकी भेरी तत्रैवोपागच्छति, उपागत्य सामुदायिकी मेरी महता २ शब्देन ताडयति, येन महाशब्दो भवति, तथा भेरी ताडयति स्मे' त्यर्थः, ततस्तदनन्तरं खलु तस्यां 'तएणं से कण्हे वासुदेवे' इत्यादि ।। टीकार्थ-(तएणं इसके बाद (से कण्हे वासुदेवे) उन कृष्ण वासुदेवने ( कोडुंबियपुरिसं सदावेह ) अपने कौटुम्बिक पुरुष को बुलाया, बुलाकर ( एवं वयासी) उनसे ऐसा कहा- ( गच्छह णं तुमं देवोणुप्पिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरि तालेहि ) हे देवानुप्रिय तुम सुधर्मा समामें जाओ और वहां जाकर सामुदाय की भेरी को बजाओ (तएणं से कोडुंबिय पुरिसे करयल जाव कण्हस्स वासुदेवस्स एयम पडि सुणेइ, पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छह, उवागच्छित्ता सामुदाइयं भेरि महयार सदेणं तालेह ) इस प्रकार की कृष्ण वासुदेव की आज्ञा को उस पुरुष ने बड़े विनय के साथ अपने दोनों हाथों को मस्तक पर रखकर स्वीकार कर लिया और स्वीकार करके फिर वह सुधर्मा सभा में जहां वह सोमुदायिकी भेरी थी वहां आया। वहां आकर उसने उस सामुदायिकी भेरी को इसतरह से 'तएणं से कण्हे वासुदेवे' इत्यादि Atथ-(तएणं) त्या२५छ(से कण्हे वासुदेवे) ते -सुवे (कोडुबिय पुरिसं सदावेइ) पाताना टुमि ५३षाने मोसाव्या सने मारावीन ( एवं वयासी ) तमने या प्रमाणे ह्यु -( गच्छह णं तुमं देवाणुप्पिया ! सभाए सुहम्माए सामुदाइयं भेरि तालेहि ) हेवानुप्रिय ! तमे सुधर्मा समामा । भने त्यो ने सामुदायिती मेरी मा. ( तएणं से कोडुबियपुरिसे कर. यल जाव कण्हस्स वासुदेवस्स एयममट्ठ पडिसुणेह पडिसुणित्ता जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरी तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सामुदाइय भेरि महया २ सद्देणं तालेइ) 0 नती -वासुदेवानी माज्ञाने ते पु३२ भूम नम्र. પણે બંને હાથને મસ્તકે મૂકીને સ્વીકારી લીધી, સ્વીકાર કર્યા પછી તે ત્યાંથી જ્યાં સુધર્મા સભામાં સામુદાયિકી ભેરી હતી ત્યાં જઈને તેણે માટે અવાજ थाय तेम त सामुदायिक सेशन १॥डी. (तएण ताए सामुद्दाइयाए भेरोए श्री शताधर्म अथांग सूत्र : 03
SR No.006334
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages867
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size50 MB
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