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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टी० अ० १६ द्रौपदीचरितवर्णनम् २६७ जेणेव सभाए सुहम्माए सामुदाइया भेरो तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सामुदाइयं भेरिं महया महया सदेणं तालेइ तएणं ताए सामुदाइयाए भेरीए तालियाए समाणीए समुदविजयपामोक्खा दस दसारा जाव महसेणपामुक्खाओ छप्पणं बलवगसाहस्सीओ व्हाया विभूसिया जहा विभव. इड्डिसकारसमुदएणं अप्पेगइया जाव पायविहारचारेणं जेणेव कण्हे वासुदेवे तेणेव उवागच्छंति उवागच्छित्ता करयल जाव कण्हे वासुदेवे जएणं विजएणं वद्धाति, तएण से कण्हे वासुदेवे कोडंबियपुरिसे सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो ! देवाणुप्पिया ! अभिसेक्कं हत्थिरयणं पडिकप्पेह हयगयजाव पञ्चपिणंति, तएणंसे कण्हे वासुदेवे जेणेव मजणघरे तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता समुत्तजालाकुलाभिरामे जाव अंजणगिरिकूडसन्निभं गयवई नरवई दुरूढे, तएणं से कण्हे वासुदेवे समुदविजयपामुक्खेहिं दसहिं दसारहिं जाव अणंगसेणापामुक्खेहिं अगेगाहिं गणियासाहस्सीहिं सद्धिं संपरिखुडे सव्विड्डीए जाव रवेणं बारवइनयरिं मज्झमज्झेणं निग्गच्छइ निग्गच्छित्ता सुरद्वाजणवयस्स मज्झं मझेणं जेणेव देसप्पंते तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पंचालजणवयस्स मज्झं मझेणं जेणेव कंपिल्लपुरे नयरे तेणेव पहारेत्थ गमणाए ॥ सू० १८ ॥
श्री शताधर्म अथांग सूत्र : 03