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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० १६ सुकुमारिकाचरितवर्णनम् अवसन्ना, अवसन्नविहारिणी, कुशीला कुशीलविहारिणी, संसक्ता, संसक्तविहारिणो, बहूनि वर्षाणि श्रामण्य पर्यायं पालयति, पालयित्वा अर्धमासिक्या संलेखनया तस्य स्थानस्याऽनालोचिता अप्रतिक्रान्ता कालमासे कालं कृत्वा, ईशाने कल्पेऽन्यत मस्मिन् विमाने माधुर्यादि वाचना ये आचार्याणां विमानसंख्याया विस्मरणेन निश्रयाभावादन्यतमस्मिन्नित्युक्तम्, देवगणिकतया उपपन्ना । तत्रैकैकासां देवीनां नवपल्योपमानि स्थितिः प्रज्ञप्ता ।। सू० १५ ।। २५१ अपना स्थान नियत करती । इस प्रकार ( तत्थ वि य णं पासत्या पासत्थ बिहारी, ओसण्णा ओसण्णविहारी कुस्तीला २ संसत्तार बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ ) वहां उस सुकुमारिका ने पार्श्वस्था पार्श्वस्थ विहारिणी, अवसन्ना, अवसन्न वहारिणी, कुशीला, कुशील विहारिणी, संसक्ता, संसक्त विहारिणी बनक अनेक वर्षों तक श्रामण्य पर्याय का पालन किया ( पाउणित्ता अद्ध सियाए) पालन करके वह अर्धमास की संलेखना धारण कर ( कालमोत ) अपनी मृत्यु के अवसर ( कालं किच्चा ) पर मरी-सो मरकर ( अणालोइय अपडिक्कता) अपने पापों की अनालोचना करने से वह प्रतिक्रान्त नहीं बन सकने के कारण ( ईसाणे कप्पे ) ईशानकल्प में ( अण्णयरंसि विमाणंसि ) किसी एक विमान में ( देवगणयन्ताए उबवण्णा) देवगणिका के रूप में उत्पन्न हुई। (तत्येगइयाणं देवोणं नवपलिओ माई ठिई पण्णत्ता, तत्थणं सूमालियाए देवीए नव पलिओ माई ठिह पण्णत्ता ) वहां कितनिक देवियों मारीते ( तत्थ वियणं पासत्या पासत्य बिहारी ओसण्णा ओसण्णविहारी कुसीलाऽसंसत्ता २ बहूणि वासाणि सामण्णपरियागं पाउणइ ) त्यां ते सुभारिममे पार्श्वस्था, पार्श्वस्थ विहारिणी, अवसन्ना, अवसन्न विहारिखी, કુશીલા, કુશીલ વિહારિણી, સંસકતા, સંસકત વિહારિણી થઇને ઘણાં વર્ષો सुधी श्राभस्य पर्यायनुं पासन यु. ( पाउणित्ता अद्धमासियाए ) पासून पुरीने ते अर्धभासिनी सबेभना धारण्य उरीने ( कालमासे ) पोताना मृत्यु अणे ( काल' किच्चा ) ते भरयु याभी. मने भरणु पाभीने (अणालोइय अपडिकंता) પેાતાના પાપાની આલેચના ન કરવાથી પ્રતિક્રાંત ન ખની શકવાના કારણે તે ( ईसाणे कप्पे ) ईशान उदयभां ( अण्णयर सि विमाणंसि ) अर्थ थोड विभा नभां ( देवगणयत्ताए उबवण्णा) देवरालिअना ३५मां नन्म याभी. ( तत्थे गइयाणं देवी णं नवपलिओ माई ठिई पण्णत्ता, तत्थणं सूमालियाए देवीए नव पलिओ माइ ठिई पण्णत्ता) त्यां डेंटली हेवी थोनी स्थिति नव पस्योपननी आहे શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૩
SR No.006334
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 03 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages867
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size50 MB
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