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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे , समतृणमणिलोष्टकाञ्चनः, समसुखदुःखः, इहलोकपरलोकाऽप्रतिबद्धः, जीवितमरणकाङ्क्षा वर्जितः, संसारपारगामी कर्मनिर्घातनार्थमभ्युत्थितः एवं च खलु मोक्षमार्गे विहरति । ततः खलु स स्थापत्यापुत्रोऽर्हतोऽरिष्टनेमेस्तथारूपाणां स्थविराणान्तिके सामायिकादीनि चतुर्दशपूर्वाणि अधीते, अधीत्य च बहुभिर्याव च्चतुर्थेन= चतुर्थभक्तादिनाऽऽत्मानं भावयन् विहरति । ५६ नगर, अरण्य आदिको में काल की अपेक्षा समय आवलिकआदिकों मैं भाव की अपेक्षा क्रोध, भय, तथा हास्यादिकों में, उन स्थापत्या पुत्र को किसी भी प्रकार का प्रतिबन्ध नहीं था । उन की दृष्टि में तृण, मणि, लोष्ट और कांचन समान थे। सुख और दुःख समान थे । इह लोक और परलोक से वे अप्रतिबद्ध थे । जीविताशंसा और मरणा शंसा से वे रहित बन चुके थे । संसार से रहित हो चुके थे कर्मों के नाश करने में ही उनका पुरुषार्थ लगा हुआ था । इस तरह वे समिति आदि कों से समित हो कर मुक्ति के मार्ग में सावधान होकर विचरण करने लगे । (तपणं से थावच्चापुते अरहओ अरिनेमिस्स तहा रुवाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाहयाइं चोदपुत्राई अहिजइ ) धीरे २ उन स्थापत्यापुत्र अनगार ने अर्हत अरिट्ठनेमि प्रभु के तथारूप स्थविरो के पास सामयिक आदि चौदह पूर्वो का अध्ययन भी कर लिया (अहिजित्ता बहूहिं जाव चउत्थेणं विहरइ ) उनका अध्ययन करके फिर उन्होंने चतुर्थ भक्तादि तपस्या से अपने को भावित किया વગેરેમાં, કાળની અપેક્ષાએ સમય આવલિકા વગેરેમાં, ભાવની દૃષ્ટિએ ક્રોધ, ભય તેમજ હાસ્ય વગેરેમાં તે સ્થાપત્યા પુત્રને કોઈપણ જાતના પ્રતિબંધ હતા નહિ तेना भाटे तो तृष्णु, मणि, घोष्ट ( भारीनु ढेडु ) भने अयन ( सोनु ) આ બધાં સરખાં જ હતાં. સુખ દુઃખ અને સરખાં હતાં. ઇંડુ લેાક અને પરલેાકથી તે અપ્રતિબદ્ધ (સ્વતંત્ર ) હતા. જીવિતાશંસા તેમજ મરણાશ’સાથી તે રહિત થયા. સંસારના વિષયેથી રહિત થઈને કર્મોના વિનાશમાંજ તેએ પુરુષાર્થ સંલગ્ન હતા. આ પ્રમાણે તે સ્થાપત્યાપુત્ર સમિતિ વગેરેથી સમિત थानि भुक्तिमार्ग मां सावधान थने विवरण ४२वा साग्या. (तरण से थावच्चापुते अरहओ अमिस्स तहारूत्राणं येराण अतिए सामाइयमाइयाई चोदस पुव्वाई अहिज्जइ ) धीमे धीमे स्थापत्या - पुत्र अनगारे अरिष्टनेमि प्रभुनी પાસે થી તેમજ તથારૂપ સ્થવિષેની પાસેથી સામયિક વગેરે ચૌદપૂર્વાનુ અધ્યयन पशु यु. (अहिज्जित्ता बहूहि जात्र चउत्थे विहरइ) अध्ययन यो माह સ્થાપત્યા પુત્રે તુ ભક્ત વગેરે તપસ્યાથી પાતાના આત્માને ભાવિત કર્યાં શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર : ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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