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________________ __ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे स्पृष्टायां जलपक्षेपेण सिक्ता, द परि ‘पच्चुत्थुयाए ' प्रत्यस्तृतायां प्रसारितायां 'मिसियायां' वृषिकायाम् आसने निषीदति-उपविशति, निषद्य मल्ल्या विदेहराजवरकन्यायाः पुरतो दानधर्म च यावद् विहरति दानधर्मशौचधर्मादि. कमाख्यापयन्ती प्रज्ञापयन्ती सा चोक्खा परिवाजिका आस्ते स्म । ततः खलु मल्ली विदेहराजवरकन्या चोक्षां परिव्राजिकामेवमवादीत-हे चोक्षे ! तब खलु किं मूलो धर्मः प्रज्ञप्तः ? ततः-मल्ली वचन, श्रवणानन्तरं खलु सा परिव्राजकों के मठ से निकली और कितनीक परिव्राजिकायों को साथ लेकर मिथिला राजधानी के बीचों बीच से होकर वह जहां कुंभक राजा का भवन था तथा उस में जहां कन्यान्तः पुर और उस में भी विदेह राज की उत्तम कन्या मल्ली कुमारी थी वहां आई- ( उवागच्छित्ता उदय परि फासियाए दभोवरि पच्चत्थुयाए भिसियाए निसियइ वहां आकर वह जल से सिञ्चित हुए तथा दर्भ के ऊपर विछाये गये आसन पर बैठ गई । (निसियित्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरओ दाणधम्मं च जाव विहरइ ) बैठकर उसने विदेह रायवर कन्याके समक्ष दान, धर्म शौचधर्म आदि की कथा की-प्ररूपणा की (तएणं मल्ली विदेहरायवर कन्ना-चोक्खं परिवाइयं एवं वयासी ) बाद में विदेह राज की उत्तम कन्या मल्लीकुमारी ने उस चोक्षा परिव्राजिका से इस प्रकार कहा-( तुम्भेणं चोक्खे किं मूलए धम्मे पण्णत्ते ? ) हे चोक्षे! तुम्हारे यहां धर्म किं मूलक ( किस मूलक ) प्रज्ञप्त हुआ है। ૨ ગેલા વસ્ત્રોને લઈને પરિવ્રાજકના મઠથી બહાર નીકળી અને કેટલીક પર વાજિકાઓની સાથે મિથિલા રાજધાની વચ્ચે થઈને જ્યાં કુંભકરાજાને મહેલ હતું તેમજ જ્યાં કન્યાન્તઃપુર અને તેમાં પણ વિદેહરાજાની ઉત્તમ કન્યા મલીકુમારી હતી ત્યાં પહોંચી. (उवागच्छित्ता उदय परिफासियाए दब्भोवरिपञ्चत्थुयाए भिसियाए निसियइ) ત્યાં આવીને તે પાણી છાંટેલા દર્ભના ઉપર પાથરવામાં આવેલા આસન ઉપર બેસી ગઈ. (निसित्ता मल्लीए विदेहरायवरकन्नाए पुरओ दाणधम्मं च जाव विहरइ) બેસીને તેણે વિદેહરાજવર કન્યાની સામે દાનધર્મ, શૌચધર્મ વગેરેની વ્યાખ્યા . (चोक्खं परिवाइयं एवं वयासी) त्या२५७ विनी उत्तम न्या मदी. कुमारी यक्षा परिमानिने २ प्रमाणे ४थु -(तुमेणं चोक्खेकिं लए धम्मे पण्णत्ते १) या ! तमारामा भूख रुपित ४२पामा माया छे. શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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