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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणा टीका अ० ५ समवसरणे कृष्णगमनादिनिरूपणम् २३ केचिद् गजगताः गजारूढाः, रहसीयासंद माणीगया' रथशिविकास्यन्दमानी गताः केचिद् रथारूढाः केचित् ' संदमाणीगया ' स्यन्दमानीगताः स्यन्दमानी=पालखीनाम्ना प्रसिद्धो वाहन विशेषः, तामारूढाः, अप्येक के= केचित् पादविहारचा रेण 'पुरिसवम्गुरापरिखित्ता' पुरुषवागुरापरिक्षिप्ताः पुरुषवृन्देन युक्ताः संभूय कृष्णस्य वासुदेवस्यान्ति के प्रादुर्बभूवुः समागताः । ततः खलु स कृष्णो वासुदेवः समुद्रविजयप्रमुखान् दशदशाहीन यावत् अन्तिकं प्रादुर्भवतः समागतान् पश्यति, दृष्ट्वा हृष्टतुष्टोऽतिशयेन प्रमुदितः कृष्णवासुदेवः कौटुम्बिकपुरुषान शब्दयति शब्दयित्वा चैवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत् - भो देवानुप्रियाः ! क्षिममेव = शीघ्रमेव, चतुरङ्गिणीं भी उनके जैसा ही हर्षित एवं संतुष्ट हो सब कुछ किया । (अप्पेगइया हय गया एवं गयगया रहसिया संदमाणीगया) इनमें कितनेक घोड़ों पर बैठकर कितनेक हाथियोंपर बैठकर कितनेक रथोंपर बैठकर कितनेका शिबिका, स्यन्दमनी - पालखी पर बैठकर ( अप्पेगइयापायविहर चारेणं पुरिसवग्गुरापरिक्खित्ता) कितनेक अनेक पुरुषो से युक्त हाकर पाद बिहार चारीगण - पैदल ही ( कण्हस्स वासुदेवस्स अंतियं पाउन्भवित्था ) कृष्ण वासुदेव के पास प्रादुर्भूत हुए-आ गये । (तएण से कण्हे वासुदेवे समुह विजयपामोक्खे दस दसार जाव अंतियं पाउडभमाणे पामइ ) इस तरह जब उन कृष्ण वादेवने समुद्रविजय आदि दश दशाहों को यावत् अपने पास में प्रादुर्भूत हुआ देखा तो (पासिता ) देखकर ( हट्ठ तुट्ठ जाव कोडुंबियपुरिसे सदावेह ) हर्षित हो यावत् कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया (सद्दावित्ता एवं वयासी) बुलाकर उनसे ऐसा कहा કર્યું, અને સ્નાન પછી પેાતાના શરીરને વો, લેપા તેમજ હારા વગેરેથી थी शत्रुगार्या अप्पेगइया हयगया एवं गयगया रहसीया संदमणीगया " આમાંથી કેટલાક ઘેાડા ઉપર સવાર થઈને કેટલાક હાથીએ ઉપર બેસીને डेंटलाङ रथेोभां मेसीने डेंटला शिमिश्र, अने पासणीमा मेसीने " अप्पेगइया पायविहरचारेण पुरिसवग्गुरा परिक्खिता " डेटलाई भने भाणुसोनी साथै भगे यासीने " कण्हस्स वासुदेवरस अतिय पाउब्भवित्था " हृणु वासुदेवनी પાસે હાજર થયા. तएण से कण्हे वासुदेवे समुद्दविजयनामोक्खे दसदसार जाव अतिय पाउन्भमाणे पासइ " भी रीते पृ॒ष्णुवासुदेवे समुद्रविन्न्य वगेरे दृश हशा वगेरे ते पोतानी पासे उपस्थित थयेला लेया भने “ पासित्ता " लेने "हट्ट जाव कोडु बियपुरिसे सहावेह" हर्षित थाछे टुमिङ पुरुषाने मोहाव्या "सद्दाविता एवं वयासी" बोसावीने तेभले भा प्रमाणे ४ धुं. " खिप्पा "" શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર : ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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