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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ कोसलाधिपति स्वरूपनिरूपणम् ३१७ नार्हति । मल्लीकुमार्या यदस्ति श्रीदामकाण्डं तस्य शोभासुगन्धादिगुणानां लक्षांशमपि प्राप्तुं न शक्नोति पद्मावत्याः श्रीदामकाण्डमित्यर्थः । ततः खलु प्रतिबुद्धिममात्य मे बमवादीत् - हे देवानुमिय! कीदृशी खलु मल्ली विदेहराजवरकन्या यस्याः खलु संवत्सरप्रतिलेखनके श्रीदामकाण्डस्य पद्मात्या देव्या श्रीदामकाण्डं शतसहस्र तमामपि कलां नार्हति ? । ततः खलु सुबुद्धिः प्रतिबुद्धिमिक्ष्वाकु राजमेवमवादीत् - हे स्वामिन् ! विदेह राजवरकन्यका मल्लीमाम्नी दामकांड लक्षांश ( लाखमा भाग भी सुन्दर और सुगंधीत में नहीं हैं) भी नही हैं (तएणं पडिबुद्धी सुबुद्धि अमच्चं एवं बयासी ) इस प्रकार सुनने के बाद प्रतिबुद्धि ने सुबुद्धि अमात्य से ऐसा कहा(केरिसियाणं देवाणुपिया ! मल्ली वीदेहरायवर कन्ना ) हे देवानुप्रिय ! विदेह राजा की वह उत्तम कन्या मल्ली कुमार कैसी है कि ( जस्स णं संवच्छर पडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स उमावईए देवीए सिरिदामगंडे सयसहस्सत्तमपि कलं न अग्घइ ) जिस की वार्षिक जयं ती के श्रीदाम कांड के समक्ष पद्मावती देवी का यह श्रीदामकांड लक्षांश भी नही ज्ञात हो रहा है । (तपणं सुबुद्धिपडिवुद्धिं इक्खागुरायं एवं वयासी ) इस तरह सुनकर सुबुद्धि ने इक्ष्वाकु वंशों में उत्पन्न प्रतिबुद्ध राजा से ऐसा कहा (विदेहरायवर कन्नगा सुपइट्ठिय कुम्मुन्नयचारुचरणा वन्नओ) स्वा• ( तस्स णं दिरीदामगंडस्स इमे पउमावईए सिरीदामगंडे सय सहस्सतमे कल्लं ण अधर) તેની સામે પદ્માવતી દેવીને આ શ્રીદામકાંડ લક્ષાંશ પણ નથી. એટલે કે સુગંધ કે સૌંદર્ય અનેની દૃષ્ટિએ મલ્ટીકુમારીના જન્માત્સવ પ્રસ`ગના श्रीडाभांडनी सामे या अंध नथी. ( तएण पडिबुद्धो सुबुद्धि अमच्च एवं बयासी) ग्यारीते सांलजीने प्रतियुद्धि सुमुद्धि अमात्यने या प्रमा उधु( केरिसियाण देवाणुपिया ! मल्ली वींदेहरायवर कन्ना ) डे हेवानुप्रिय ! विहेड રાજ પુત્રી મલ્લીકુામારી એવી કેવી છે કે, 66 जस्स णं संवच्छरपडिलेहणयंसि सिरिदामगंडस्स पउमावईएदे बीए सिरि दामगंडे सयसहस्सत्तमं पि कलं न अग्धइ " જેમના જન્માત્સવના શ્રીદામકાંડની સામે પદ્માવતી દેવીને આ શ્રીદામ કાંડ લક્ષાંશ પણ લાગતા નથી. (तरण सुबुद्धि पडिबुद्धिं इक्खागुरायं एवं वयासी) मा रीते सांलजीने वृक्ष्वाकुवंशमां उत्पन्न प्रतियुद्ध राजने सुमुद्धियो मधुं (विदेहरा यवर कन्नगा શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર : ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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