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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ८ महाबलषट् राजचरितनिरूपणम् २८१
उस समय ( सउणे सु जइएस्तु) काक आदि पक्षी, राजा आदि के विजय सूचक शब्द बोल रहे थे। (मारुयंसि ) हवा भी (पयाणु कूलंसि ) प्रदक्षिणावर्त हो कर ( पवायंसि ) वह रही थी। सुरभी और शीतल मन्द होने के कारण वह अनुकूल थी। (भूमि सप्पिसि) भूमि का स्पर्श वह कर रही थी। (कालंसि ) वह समय ऐसा था कि जिसमें (निष्फनसस्समेइणीयंसि ) निष्पन्न सस्य से मेदिनी आच्छादितहरी भरी बनी हुई थी ( जणवए सु) जन पद भी (पमुइयपक्कीलीएसु) हर्ष से हर्षित बने हुए थे और विविध प्रकार की क्रीडाओ में रत थे( अद्धरत्तकालसमयंसि ) यह समय अर्द्ध रात्रि का था । (अस्सिणी णक्खत्तेणं जोगमुवगएणं ) इस में अश्विनी नक्षत्र का चन्द्र के साथ योग हो रहा था (जे से हेमंताणं चउत्थे मासे अट्ठमे पक्खे फग्गुण सुद्धे ) यह अर्धरात्रि का समय फालगुन मास के शुक्ल पक्ष का था। यह मास हेमंत काल के मासो में चौथा मास तथा ८ वां पक्ष है। (तस्स णं फग्गुणसुद्धस्स चउत्थि पक्खे णं) ऐसी उस फाल्गुन शुक्ल चौथ की अर्द्धरात्रि के समय में वे महावल देव अपनी ३२ सागर की स्थिति पूर्ण करके उस जयंत नामक विमान से चव कर प्रभावती देवी
त मते (सउणेसु जइएसु ) 11 पोरे पक्षी. २०० पोरेन। भाटे विन्यने सूयवना। शह! यारी २ह्या उता. ( मारुयसि) पवन ५५] (पयाणुकूलंसि ) प्रक्षित ने (पवायसी) पात sil. शीत भन्न अने सुगध युत पवन मनु सातो तो. — भूमिसपिसि ' ते पृथ्वीने। २५श २तां पाते। इत। तो. 'कालंसि' मावो सुबह समय हतभा (निप्फन्नसस्समेइणियसि ) निष्पन्न धानथी भेडिनी पृथ्वी' लीसाछ म माप. २४ थी .15 २ही ती. 'जणवएसु' न५४ ५Y ‘पमुइय पक्कीलीएसु' હર્ષમાં તરબોળ થઈ રહ્યું હતું. અને જાત જાતની કડાઓમાં મસ્ત હતું “ગઢरत्तकालसमय सि' मधी शतनावमत डतो. 'अस्सिणीणक्खत्तण जोगमुवगए ण' अश्विनी नक्षत्री यन्द्रनी साथे यो1 रह्यो खतो. 'जे से हे मंताणं चऊत्थे मासे अट्ठमे पक्खे फग्गुणसुद्धे ' । माडना ना शु पक्ष यादते। હતું. આ મહિને હેમંત કાળના મહિનામાં એથે મહિને તેમજ આઠમે ५क्ष छे. 'तस्सण फग्गुणसुद्धस्स चउत्थि पकखण' मेवी शमन शुस ચેથના અડધી રાતના વખતે મહાબલ દેવ પિતાની બત્રીશ સાગરની સ્થિતિ પૂરી કરીને તે યંત નામક વિમાનમાંથી ચવીને પ્રભાવતી દેવીના ગર્ભમાં
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨