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________________ २६२ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे द्भागं पश्यति, तथा यत् तपः पूर्वकृतं पुनरावोत्तरोत्तरं क्रियते तत् सिंहनिष्कीडितमित्युच्यते । तपःकर्मोपसंपद्य विहरन्ति । तत्र क्षुल्लकं सिंहनिष्क्रीडितं तपः कर्म केन प्रकारेण तैः कृतमित्याकाङ्क्षायामाह-' तंजहा ' इत्यादि चतुर्थ चतुर्थभक्तमेकोपवासरूपं कुर्वन्ति कृत्वा ' सव्वकामगुणियं ' सर्वकामगुणितं सर्वेकामगुणाः दुग्धदधिधृततैलमधुररूपा विकृतयः संजाता यत्र तत् सर्वकामगुणितम्. इदं पारणक्रियायाविशेषणं, 'पारेति ' पारयन्ति पारणं कुर्वन्ति । पारयित्वा षण्ठं कुर्वन्ति, ततः पारणं कृत्वा पष्ठभक्तं द्वयुपवासरूपं तपः कुर्वन्ति- इत्यर्थ कृत्वा तरह सिंह अपने पश्चात् भाग का निरीक्षण करता आगे चलता है उसी प्रकार जो तप पूर्वकृत तपो को साथ लेकर आगे २ किया जाता है उस का नाम सिंहनिष्क्रीडित तप है । (तंजहा ) यह क्षुल्लक सिंह निष्क्रीडित तप उन्हों ने किस प्रकार से किया इस बात को अब सूत्रकार प्रदर्शित करते हैं । - (चउत्थं करेंति, करित्ता सव्वं कामगुणियं पारेंति, पारित्ता छटुं करेंति, करित्ता चउत्थं करेंति करित्ता अट्ठमं करेंति, करिता छ8 करेंति, करित्ता, दसमं करेंति, करित्ता अट्टमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति, करित्ता दसमं करेंति, करित्ता चाउद्दसमं करेंति करित्ता दुवालसमं करेंति) उन्हों ने पहिले चतुर्थ भक्त-एक उपवास किया। एक उपवास करके विगय सहित पारणा किया पारणा करके फिर छनुभक्त -दो उपवास किये दो उपवास करके फिर उन्हों ने पारणा किया बाद में चतुर्थ भक्त किया। चतुर्थभक्त करके पारणा किया फिर-तीन उपઆગળ ચાલે છે તે પ્રમાણે જ જે તપ પૂર્વે કરેલાં તપને સાથે લઈને भाग ४२वामां आवे छे, ते त५ सिड निीत पाय छ. ( त जहा ) અનગારોએ આ ક્ષુલ્લક સિંહ નિષ્ક્રીતિ તપ કેવી રીતે કર્યું ? તે વિષે સૂત્રકાર સ્પષ્ટીકરણ કરતાં કહે છે. ( चउत्थं करेंति, करित्ता सबकामगुणियं पारेति, परित्ता, छठें करेंति करित्ता चउत्थं करेंति, करित्ता अट्ठमं करेंति, करित्ता छटुं करेंति, करित्ता दसमं करेंति. करित्ता अट्टमं करेंति, करित्ता दुवालसमं करेंति करित्ता चाउद्दसमं करेंति करित्ता दुवालसमं करें ति) તેઓએ સૌ પ્રથમ ચતુર્થ ભક્ત-એક ઉપવાસ કર્યો. એક ઉપવાસ કરીને વિગય સહિત પારણાં કર્યા. પારણા કર્યા બાદ ફરી છઠ્ઠભક્ત-બે ઉપવાસ કર્યા. બે ઉપવાસ કરીને તેઓએ પારણાં કર્યા ત્યાર બાદ ચતુર્થ ભક્ત કર્યા બાદ પારણાં કર્યા. ત્યાર પછી ત્રણ ઉપવાસ રૂપ અષ્ટમ ભકત કર્યો. અષ્ટમ ભકત શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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