SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 213
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ७ धन्यसार्थवाहचरितनिरूपणम् १९९ 'खुड्डागं ' क्षुलकं 'कयार' केदार क्षेत्रं वयारा, इति भाषा प्रसिद्ध 'सुपरि कम्मियं ' सुपरिकर्मित शाल्यक्षतवपनयोग्यं करेह' कुरुत, कृत्वा च 'इमे' इमान् पञ्चशाल्यक्षतान 'वावेह ' वपत परोहाथ क्षेत्र प्रक्षिपत, उप्त्वा क्षेत्र वपनं कृत्वा द्वितीयमपि तृतीयमपि वारं ' उक्खयनिहए ' उत्वातनिहतान् क्षेत्रे जातान् पुनस्तान वर्धनाथ द्वित्रिवारम्-उत्पाटय अन्यत्र क्षेत्रे समारोपितान् ‘करेह' कुरुत एकस्मात् स्थानादन्यस्थाने रोपयत ' करित्ता' कृत्वा-रोपयित्वा, 'वाडिपडिक्खेवं ' वाटिकापरिक्षेपं = प्राकाराकारेण वाटिकां कुरुत कृत्वा संरक्षन्त, संगोपायन्त आनुपूा अनुक्रमेण 'संवदेह' संवर्धयत । सुपरिकम्मियं करेह ) हे देवानुप्रियो ! तुम लोग इन पांच शालि अक्षतो को लो-और लेकर जब सर्व प्रथम वर्षाकाल के प्रारम्भ में जलराशि रूप अप्काय महा वृष्टिरूप से भूमि पर गिरे तो उस समय तुम छोटी सी एक क्यारी में शालि अक्षतों को बोने के योग्य करो ( करित्ता इमे पंच सालि अक्खए वावेह वावित्ता दोच्चपि तच्चपि उक्खय निहए करेह, करित्ता वाडिपक्खे करेह करित्ता सारक्खेमाणा संगोवेमाणा अणुपुत्वेणं संवह ) जब वह क्यारी अच्छी तरह से परिकर्मित हो जावे तो उसमें इन पांच शालि अक्षतों को तुम लोग यो दो। ___बोकर दुबारा तिबारा उन्हे उत्खात निहत करो-अर्थात् जब वे खेत में-क्यारी में-अंकुररूप से उत्पन्न हो जावे तब उन्हें वृद्धिंगत करने के लिये वहां से उखाड़ो और फिर दूसरी जगह-क्यारी में उन्हें आरोपित करो। इस तरह दो तीन बार करो। करके फिर उस खेत को वाड़ी से परिवृत करो-प्राकार के आकार जैसी कांटो की बाड़ से દેવાનુપ્રિયે ! તમે આ પાંચ શાલિકણે લો અને વર્ષાકાળ ના પ્રારંભમાં અપૂકાયમહાવૃષ્ટિ રૂપે જળ વૃષ્ટિ થાય ત્યારે તમે નાની સરખી એક કયારી २ मा शासि। वावी शत शते याय मनाने, (करित्ता इमे पंच सालि अक्खए वाह वावित्ता दोच्चापि तच्चापि उक्चइ निहए करेह, करित्ता वाडि पक्खेव करेह करित्ता सारक्खेमाणा संगोवेमाणा अणुपुत्वेण सवडूढेह) ध्यारी જ્યારે સરસ રીતે તૈયાર થઈ જાય ત્યારે તેમાં આ પાંચે શાલિકને વાવજે. વાવીને બીજી અને ત્રીજી વખત ઉત્પાત નિહિત કરે એટલે કે જ્યારે શાલિકણો યારીમાં ઊગી જાય ત્યારે તેઓના વર્ધન માટે તે સ્થાનેથી ઉપાડીને ફરી બીજે સ્થાને છે. આ પ્રમાણે તમે બે ત્રણ વખત કરે આમ કરીને તમે તે શાલિકણવાળી ક્યારીની ચોમેર કાંટાઓની વાડ બનાવે. આ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy