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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे ततस्तदनन्तरं खलु सा-उज्झिका नाम्नी वधूः धन्यस्य सार्थवाहस्यैतमर्थ 'तहत्ति तथेति कृत्वा-तथास्त्विति कथयित्वा 'पडिमुणेइ ' प्रतिशृणोति स्वीकरोति । 'पडिसुणित्ता' प्रतिश्रुत्य-स्वीकृत्य धन्यस्य सार्थवाहस्य हस्तात् ' ते ' तान् पञ्चशाल्यक्षतान् गृहति गृहीत्वा 'एगंतमवक्कमइ ' एकान्तमपक्रामति एकान्त स्थाने गच्छति — एगंतमवक्कमियाए' एकान्तमपक्रमितायाः एकान्तं गच्छन्त्याः मनसि ' इमेयारूवे ' अयमेतद्पः ' अज्झथिए ' आध्यात्मिकः-आत्माश्रयो या वत्संकल्पासमुदपद्यत एवममुना प्रकारेण खलु निश्चयेन 'तायाणं' तातस्य श्वशुरस्य ( तायाणं ) अत्र आदरार्थ बहुवचनं, 'कोट्ठागारंसि' कोष्ठागारे 'वहवे ' बहवः -अनेकसंख्यकाशालिनां 'पल्ला' पल्यकाः-पल्यकामानविशेषा तैः 'पडिपुन्ना' प्रतिपूर्णाः भृतास्तिष्ठति सार्द्धवयमणप्रमितानां धान्यानामेकः पल्लक इत्यभिधीयते ते पल्लका बहवः कोष्टागारे भृताः संतीति भावः । 'तं जया णं ' तद् (तएणं सा उज्झिया धण्णस्स तहत्ति एयमढे पडिसुणेइ) चलते समय उस ज्येष्ठ पुत्र वधू उज्झिका ने धन्य सार्थवाह के "तथास्तु" कहकर इस कथनरूप अर्थको स्वीकार करलिया (पडिसुणित्ता घण्णस्स सत्थवाहस्स हत्थाओ ते पंच सालि अक्खए गेण्हइ ) स्वीकार करके धन्य सार्थवाह के हाथ से उन पांच शाल्यक्षतों को फिर उसने ले लिया। (गेण्हित्ता एगंतमवक्कमइ ) लेकर फिर वह वहां से एकान्त स्थान में चली गई । ( एगंतमवकमियाए इमेयारूवे अज्झथिए ० ) वहां आकर उसने ऐसा विचार किया-(एवं खलु तायाणं कोहागारंसि वहवे पल्लासालि णे पडिपुषणा चिटुंति ) तात-श्वशुरजी-के कोष्ठागार में-अनेक चावलो के पल्पक भरेहुए रक्खे हैं। यहां पत्यक एक प्रमाण विशेष का नाम है। यह ३॥) मन का होता है। तं जयाणं मम ताओ याधीने तमने पानी माश! Anी. ( तएणं सा उज्झि या धण्णस्स तहत्ति एयमद्वं पडिसुणेइ ) ती मते मोटर पुत्रनी १५ मे धन्य साथपाइने 'सा' (तथास्तु) मा म उहीन तनी माज्ञाने स्वी . (पडिसुणित्ता धण्णस्स सत्थवाहस्स हत्याओ ते पंच सालिअक्खए गेण्हइ ) म स्वीयर्या ५छ। ધન્ય સાર્થવાહના હાથથી તેમણે પાંચ શાલિકણે લઈ લીધાં. (गेण्हित्ता एगतमवकाइ ) तिन नेत त्यांथी मत स्थान त२३ ती २ही. ( एगंतमवकमियाए इमेयारूवे अज्झथिए० ) त्यां मे त२५ भापीने तेणे विया२ -( एवं खलु तायाणं कोडागारं सि वहवे पल्लासालिणं पडिपुण्णा चिति ) " भा२। मसराना ।४।२भा यामाना घ! ५८य। मरे छ. ( ५८५ मे प्रमाण विशेषतुं नाम छ. ते 31 मथुन डाय ) (तं શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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