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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका अ० ७ धन्य सार्थवाहचरितनिरूपणम् १९१ एवमवदत् हे पुत्रि त्वं खलु मम हस्तादिमान् पञ्च शाल्यक्षतान् गृहाण, गृहीत्वाच 'अणुपुब्वेणं ' अणुपूा -अनुक्रमेण संरक्षन्ती संगोपायन्ती विहराहि ' विहर. । 'जया' यदा-यस्मिन् समये खलु हे पुत्रि ! अहं 'तुम' तवपार्श्वे इमान् पञ्च शाल्यक्षतान् ‘जाएउजा' याचय, ' तया' तदा तस्मिन् समये खलु 'तुमं त्वं मम इमान् पश्चशाल्यक्षतान् ' पडिदिज्जासि' प्रतिदद्याः पश्चाद् मह्यं समर्पये, इतिकृत्वा-इस्युक्त्वा ज्येष्ठायाः स्नुषायाः हस्ते ददाति, दत्वा च प्रतिविसर्जयति, धन्य सार्थवाह ने अपने मित्र ज्ञाति आदि जनों के तथा उन चारों जपनी पुत्रवधूओं के कुल गृहवर्ग के सामने पांच शाल्यक्षतो को लिया और लेकर ज्येष्ठा जो पुत्रवधू थी कि जिसका नाम उज्झिका थी उसे बुलाया (सहावित्ता एवं वयासी तुमं णं पुत्ता ! मम हत्थाओ इमे पंच सालिअक्खए गेण्हाहि, गेण्हित्ता अणुपुब्वे णं सारक्खेमाणी संगोवेमाणी विहराहि) बुलाकर उससे ऐसा कहा-पुत्रि ! तुम मेरे हाथ से इन पांच शाल्यक्षतों को लों और लेकर इन्हें सुरक्षित रखो सम्मा. लकर अच्छी तरह से रखो। ( जयाणं अहं पुत्ता ! तुम इमे पंच सालिअक्खए जाएज्जतयाणं तुमं मम इमे पंच सालिअक्खए पडिदि. ज्जाएज्जासि ) जब मैं हे पुत्रि ! तुम से इन पांच शालि अक्षतों को मागू तब तुम मेरे लिये इन्हें पीछे देना। (त्तिकटु सुहाए हत्थे दलयइ ) ऐसा कहकर उसने उस ज्येष्ठ स्नुषा के हाथ में उन शाल्यक्षतो को दे दिया । ( दलयित्ता पडिविसज्जेइ ) देकर फिर उसे विसर्जित कर दिया। મેહમાનોને સત્કાર તેમજ સન્માન થઈ ગયું ત્યારે ધન્ય સાર્થવાહે પિતાના મિત્ર જ્ઞાતિ વગેરે સ્વજને તેમજ ચારે પુત્ર વધૂઓના માતાપિતા વગેરે સગાવહાલા એની સામે પાંચ શાલિકણ (ડાંગરના કણે) લીધા અને पोताना सीथी भाट। पुनी माय Gloristi मायावी. (सदावित्ता एवं वयासी तुम णं पुत्ता ! ममहत्याओ इमे पंचसालि अक्खए गेण्हाहि गेण्हित्ता अणुपुत्वेणं सारक्खेमाणी संगोमाणी विहराहि ) मोसावीन तन । प्रभारी કહ્યું “હે પુત્રિ ! આ પાંચ શાલિકણોને તમે સ્વીકારે અને એમને સારી रीते समाजाने सुशक्षित राम. (जयाणं अहं पुत्ता ! तुम इमे पंच सालि. अक्खए जाएज्ज तयाणं तुम मम इमे पंचसालि अक्खए पडिदिज्जासि ) 3 पुत्रि! જ્યારે હું તમારી પાસેથી શાલીકણે માગું ત્યારે તમે મને પાછા આપજે. (त्तिक8 सुहाए हत्थे दलयइ ) माम ४हीने तो मोटा पुत्रनी पधूना यम शी ने भूटी डीघi. ( दलयित्ता पडिविसज्जेइ ) शald! શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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