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________________ अनगारधर्मामृतवषिणी टीका अ० ६ इन्द्रभूतेः जीवविषये प्रश्नः १७३ ___ अथ नूनं-निश्चयेन ! तत्तुम्बं तेपामष्टानां मृत्तिकालेपानां सम्बन्धाद् ' गुरुययाए ' गुरुकतया ‘भारिययाए' भारिकतया दर्भकुशमृत्तिकानां भारेण भाराक्रान्तातया, अतएव-' गुरुयभारिययाए' गुरुकभारिकतया उक्त हेतुद्वयस्य सद्भावेन शीघनिमज्जनस्वभावता प्रदर्शिता उपरि सलिलमतिव्रज्य-अतिक्रम्य परित्यज्य अधो-नीचैः धरणीतलप्रतिष्ठान-पृथ्वीतलं प्रतिष्ठानमाधारो यस्य तत् भवति-भूमितलमाश्रित्य तिष्ठतीत्यर्थः । एवमेव गौतम ! जीवा अपि प्राणातिपातेन यावद् मिथ्यादर्शनशल्येन आनुपुर्व्या अष्टकर्मप्रकृतिः समर्जयन्ति, तासां गुरुकतया भारिकतया गुरुकभारिकउदगंसि पक्खिवेज्जा ) इस तरह के उपायसे बीच २ में वेष्टित कर बीच २ में लिंपकर बीच २ में सुका कर जब आठ बार मिट्टी के लेप से उसे वह लिप्त कर चुकता है और बाद में उसे अगाध गहरे पानी में कि जो अतार तथा पुरुष प्रमाण से अधिक है डाल देता है ' अत्थाह' यह देशीय शब्द है और इसका अर्थ अगाध होता है (से गूणं गोयमा से तुंबे तेसिं अट्टण्हं मट्टियालेवाणं गुरुयात्ताए भारियत्ताए गुरियभारि यत्ताए उपि सलिलमइवइत्ता अहे धरणियलपइट्ठाणे भवइ ) तो निश्चय से हे गौतम ! वह तुंबी उन आठ बार के मिट्टी के लेपों के संबंध से गुरु हो जाने के कारण और ८ बार के दर्भ कुशों के भार से वजन दार हो जाने के कारण जैसे शीघ्र ही ऊपर में पानी को छोड़ कर नीचे पानी के बैठ जाती है ( एवामेव गोयमा ! ) इसी तरह हे गौतम । (जीवा वि पाणाइवाएणं जाव मिच्छादसणसल्लेणं अणुपुव्वेणं अट्ठकम्म पगडीओ समज्जिणंति ) जीव भी प्राणातिपातया પ્રમાણે તંબીને આઠ વખત દાભ અને કુશથી વીંટાળીને તથા આઠ વખત માટીને લેપ કરીને તાપમાં સુકવે છે ત્યાર બાદ તેને ઉંડા “અતાર તેમજ पुरुष प्रमाण ४२di qधारे धे। पाएमi नाभी छ. ( अस्थाह ) मशीय शम् छ भने तेन। अर्थ मागाध डाय ते. ( से णूणं गोयमा ! से तुबे वेसि अण्ह महियालेवाणं गुरूयात्ताए भारिंयत्ताए गुरियभारियत्ताए उपि सलिलमड वइत्ता अहे धरणियलपइठाणे भवइ ) गौतम! पाशीभ नामेसी तभी આઠ વખત માટીના લેપથી ભારે થઈ જવાને કારણે તેમજ આઠ વખત દાભ તથા કુશના ભારથી ભારે થઈ જવાને લીધે પાણીમાં નાખતાની સાથે જ ५६i नाय ती २ छ अर्थात् डूमी तय छे. ( एवामेव गोयमा!) मा प्रभारी डगौतम ! (जीवा वि पाणाइवाएण जाव मिच्छादसणसल्लेण अणुपुब्वेण अकम्मपाडीओ समजिणंति ) ०१ ५१ प्रतियात यावत શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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