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________________ - अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ० ५ शैलकराजऋषिचरितनिरूपणम् १३९ राजा चिकित्सकान् वैद्यान् शब्दयति आह्वयति. । शब्दयित्वा आहूय, एवं -वक्ष्यमाणप्रकारेण अवादीत-यूयं खलु देवानुप्रियाः ! शैलकस्य राजर्षेः 'फासु एसणिज्जेण' प्रासुकैषणीयेन यावत् औषधभेषजेन ' तेगिच्छं' चिकित्सां रोगनिवारणोपायम् आवर्तयत कुरुत. । ततस्तदनन्तरं चिकित्सकाः वैद्या मण्डुकेन राज्ञैवमुक्ताः हृष्टतुष्टाः प्रमुदिताः सन्तः शैलकस्य यथापवृत्तः साधुकल्प्यैः प्रासुकैषणीयरित्यर्थः, औषधभैषज्यभक्तपानैश्चिकित्सां व्याधिप्रतीकारम्. आवर्तयति =करोति 'मज्जपाणयं च, मद्यपानकंचमद्यस्य, निद्राकारकद्रव्यविशेषस्य पानं च 'से' तस्य शैलकस्य उपदिशन्ति । कर आज्ञा लेकर ठहर गये । (तएणं से मंडुए चिगिच्छए सद्दावेइ) इसके बाद मंडक राजा ने वैद्योंको बुलाया (सदावित्ता एवं वधासी) बुलाकर उनसे ऐसा कहा (तुम्मे णं देवाणुप्पिया । सेलयस्स फासुएसणिज्जेण जाव चिगिच्छं आउद्देह ) हे देवानुप्रियो ! तुम लोग शैलक राज ऋषि अनगार की प्रासुक एषणीय औषध भेषज से चिकित्सा करो । (तएणं ते तेगिच्छया मंडएणं रन्ना एवं वुत्ता हट्ट तुट्ठा समाणा सेलयस्स अहापवत्तेहिओसहभेसज्जभत्तपाणे हिं चिगिच्छे आउट्टे ति ) इस प्रकार मंडूक राजा द्वारा कहे गये उन वैद्यों ने हर्ष एवं संतोष से युक्त होकर उन शैलक राजऋषि की यथा प्रवृत्त निर्दोष औषध भेषजों से तथा भक्त पानों से चिकित्सा करना प्रारंभ कर दिया। (मज्ज पाण च से उवदिसति ) और निद्रा कारक द्रव्य विशेष का पीना उन्हें बतला दिया। यहां यह जो मद्य शब्द प्रयुक्त हुआ है वह मदिरा अर्थ का वाचक नहीं हैं। किन्तु निद्रा कारक पेघद्रव्य विशेष का वाचक है । क्यों कि साधुभगवान ते त्यां आया. (तएण से मंडुर चिगिच्छए सद्दावेइ) त्यार माह भ७४ २२ वैधोने सोसाव्या. ( सदावित्ता एवं वयासी) मालावीन तेमने या प्रमाण ४थु (तुब्भेण देवाणुप्पिया ! सेलयस्स फासुएसणिज्ने ण जाव तेगिच्छ आउद्देह ) वानुप्रियो ! तमे शैस २१षि मनारनी प्रासु अषणीय मोषध मने लेप४ थी पिठित्सा ४२. (तएण ते तेगिच्छया मंडुएण रना एवं'वुत्ता हट्ठा तुद्रा, समाणा सेलयस्स अहापवत्तहिं ओसहभेसज्जभत्तपाणेहि चिगिच्छ आउटुंति ) २ री में रानी पात सामजी ने बत तेमका સંતુષ્ટ થયેલા વૈદ્ય શૈલક રાજકષિની ઉચિત ઔષધ અને ભેષજેથી તેમજ मतानाथी CिAL (Sear ) ४२१. सा-या. (मज्जपाणयंच से उवदिसति) અને નિદ્રાવશ થઈ શકાય તેવા પદાર્થ વિશેષને પીવાની વિધિ તેમને સમmवी. मी ( मज्ज) भय मान्य छेते महिश (२) अय શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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