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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणो टीका अ० ५ शैलकराजचरितनिरूपणम् १२५ शब्दयति, आह्वयति । शब्दयित्वा आहूय, एवं वक्ष्यमाणप्रकारेणावादीत्-क्षिप्रमेव शीघ्रमेव भो ! देवानुपियाः ! मण्डूकस्य कुमारस्य महार्थ-महाप्रयोजनकं यावत्राज्याभिषेकं ' उवटवेह' उपस्थापयत कुरुत । ' अभिसिंचंति ' अभिषिञ्चन्ति, ततस्ते कौटुम्बिक पुरुषाः सुवर्णरजत कलशैमण्डूककुमारं स्नापयित्वा सर्वालङ्कार विभूषितं कृत्वा, तस्य राज्याभिषेकं कुर्वन्ति स्मेत्यर्थः । यावद् मण्डूको राजा जातः विहरति आस्ते ॥ सू०२७ ॥ मूलम्-तएणं से सेलए राया मंडुयं रायं आपुच्छइ, तएणं से मंडुए राया कोडुंबियपुरिसे सदावेइ, सदावित्ता एवं वयासी-खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! सेलगपुरं नगरं आसित्त संमजिओवलितं गंधोदयसित्तं गंधवट्टिभूतं करेह य कारवेह य, एवं वयासी) इसके बाद उस शैलक राजा ने जब उन पांचसौ मंत्रियों को अपने समीप उपस्थित हुआ देखा तो देखकर वह बहुत अधिक प्रसन्न एवं संतुष्ट हुआ ओर उसी समय उसने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया-बुलाकर उनसे कहा (खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मंडुयस्स कुमारस्स महत्थं जाव रायाभिसेयं उवट्ठवेह, अभिसिंचइ जाव राया यावत् विहरइ) भो देवानुप्रियो! तुम लोग शीध्र ही मंडुक कुमार का महार्थ साधक-महाप्रयोजन भूत-यावत् राज्याभिषेक करो । उन्हों ने उसका राज्याभिषेक किया अर्थात् सुवर्ण रजत के कलशों से मंडूक कुमार का अभिषेक कर और उसे समस्त अलंकारों से विभूषित कर राज्य पद में अभिषिक्त किया। इस तरह मंडूक कुमार राज्य पदासीन हो गया ॥ सूत्र २७ ॥ पुरिसे सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी) त्या२ ॥ पोताना पांयसे। भत्रीमाने આવેલા જોઈને રાજા ખૂબજ પ્રસન્ન થયા અને સંતુષ્ટ થયા રાજાએ તરત જ पोताना औटुमि पुरुषाने साच्या मने मतावाने तेभने धु-( खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! मंडुयस्स-कुमारस्स महत्थ जाव रायाभिसेय उवटवेह अभिसि चइए जाव राया यावद् विहरइ) ले देवानुप्रियो ! तमे सत्वरे भ. २०१४ કુમારને મહાઈ સાધક મહાપ્રયજન ભૂત-રાજ્યાભિષેક કરો કૌટુંબિક પુરુ એ રાજાની આજ્ઞા પ્રમાણે જ મંડૂક રાજકુમાર રાજ્યભિષેક કર્યો એટલે કે તેઓએ સેના રૂપાના કળશોથી અંક કુમારને અભિષેક કર્યો. અને બધા અલગ ॥३॥थी तेन शाशन २५ सिडासन ५२ मेसाईयो, ॥ सूत्र “२७"॥ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૨
SR No.006333
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 02 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages846
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size47 MB
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