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अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ ४. गुप्तेन्द्रियत्वे कच्छपश्रृगाल द्रष्टान्तः ७३३
मूलम्-तएणं ते पावसियालया एए कुम्मए दोचंपि तच्चपि, सवओ समंता उठवत्तेति जाव नो चेवणं संचाएंति जाव करेत्तए, ताहे संता तंता परितंता निम्विन्ना समाणा सणियं २ पञ्चोप्लकेति, पच्चोसक्कित्ता एगंतमवक्रमति, एगंतमवक्कमित्ता णिच्चला गिफन्दा तुसिणिया संचिट्ठति ॥ सू. ८॥
__टीका--'तएणं ते पावसियालया एए कुम्मए' इत्यादि । ततः खलु तौ पापशृगालको (इदं कर्तृपदं) एतौ 'दोच्चंपि' द्वितीमयमपि द्वितीयवारमपि 'तचं पि तृतीयमपि तृतीयवारमपि मुहुर्मुहुरित्यर्थः, 'सव्वओ समंना उव्वत्तेति जाव' सर्वतः समन्ताद् उद्वर्तयतः यावत् 'नो चेव णं संचाएंति जाव करेत्तए' नो चैव खलु शक्नुतः यावत् कर्तुम्, अनन्तरसूत्रोक्तप्रकारेणोद्वर्तनादिभिर्भय
'तएण ते पारसियालया, इत्यादि ।
टीकार्थ-- (तएणं) इसके बाद--अर्थात् जब वे पापी श्रृगाल उन कच्छपों के शरीर में कुछ भी क्षति नहीं पहुँचा सके तब (ते पावसियालया) वे पापी दोनों श्रगाल (एए कुम्मए) इन दोनों कच्छपों को (दोचंपि तचंपि सव्वओ समंता उव्वतेंति जाव नो चेव ण संचाएंति, जाव करेत्तए) दुवारा तिवारा भी--अर्थात् बारंबार सब प्रकार से उन्हें उद्वर्तित करने लगे--परिवर्तित करने लगे, प्रासारित करने लगे, संसारित करने लगे--कम्पित करने लगे--घटित करने लगे, स्पन्दित करने लगे, क्षुभित करने लगे, और उनके पास भयजनक चेष्टा भी करने लगे इत्यादि-अनंतर सूत्रोक्त सब प्रकार का कार्य वहां उन्होंने किया परंतु
'तएण ने पावसियालया, इत्यादि।
टी--(तए ण) त्या२ पछी मेटले न्यारे तेयो भने पापी यो ४ायमायाना शरीरने स०४ /on पडांया २४या ना त्यारे (ते पाव सियालया) तन्मे मने पापी Tuो (एए कुम्मए) माने यमामाने (दो चपि तच्चापे सव्वओ समता उव्वत्तेति जाव नो चेव ण संचाएंति जाव करेत्तए) भाल पार भने त्री० पा२ मेटले पारवा२ मधी माथी भने બધી રીતે તેઓને ઉદ્વર્તિત તેમજ પરિવર્તિત કરવા લાગ્યા, આસારિત કરવા લાગ્યા, સંસારિત કરવા લાગ્યા, હલાવવા લાગ્યા, ઘર્ષિત કરવા લાગ્યા, વંદિત કરવા લાગ્યા, ક્ષભિત કરવા લાગ્યા અને તેમની પાસે ભયઉત્પાદક ચેષ્ટાઓ પણ કરવા લાગ્યા,
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧