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________________ জাবাঘমকাথামুন सोमागारे' शशिसौम्याकार:-शशी-चन्द्रस्तद्वत् सौम्य: रमणीयः, आकार:= स्वरूपं यस्य स तथोक्तः । 'कंते’ कान्तः कमनीयः । 'पियदसणे' प्रियदर्शन:प्रियं-दर्शकजनमनोहलादकं दर्शनम् अवलोकनं यस्य स तथोक्तः । 'सुरूवे' सुरूपः सर्वातिशायिरूपलावण्यवान् । 'सामदंडभेय उवप्पयाणणीइमुप्पउत्तणयविहिण्णू' सामदण्डभेदोपप्रदाननीति सुप्रयुक्तनयविधिज्ञ:-तत्र साम= वयं युष्मा. कं यूयमस्माकं को भेदोऽस्माकम्' इत्यादि मधुरवाक्यैः शत्रुपक्षवशीकरणम्, दण्ड: दण्डयते-धनाद्यपहरणेन निस्सारी क्रियते जनो येन स तथोक्तः क्लेशोत्पादेन परिपूर्ण था। चंद्रमाके जैसा इसका सौम्य आकार था। देखने वालों को यह बहुत अधिक प्रिय लगता था। कमनीय था। रूप लावण्य इसके प्रत्येक अंग से टपकसा रहा था। यही "अहोणजावसुरूवे" में जो यावत् पद रखा है-उस से इस पाठ का यहाँ ग्रहण किया गया है-अहीणपडिपूण्ण-पंचेन्द्रियसमेरे लक्खणवंजणगुणोववेए, माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्ण -सुजायसव्वंगसुदरंगे, ससिसोमागारे, कंते, पियदसणे सुरूवे । (सामदंड भेदउवप्पयाणणीतिसुप्पउनणयविहिन्नू ईहा-चूहमग्गण गवेसणअत्थसत्थमइविसामए) हम आपके हैं आप हमारे हैं हम में और आप में कोई भेद नहीं है इत्यादिमधुर वचनों द्वाराशत्रुपक्ष को वश में करना यह साम उपाय है, क्लेश उत्पन्न करके अथवा काष आदि का अपहरण करके शत्रु को वश में करना-या उसे बिलकुलकमजोर बना देना यह दण्डनीति है, शत्रु पक्ष के स्वामी-तथा सेवक में जो परस्पर में स्नेह होता है उसमें भेद करना-उनके चित्त में ऐसी बात जमा देना कि जिससे दोनों आपसमें एक दूसरे का विश्वास न कर सकें इसका नाम भेदनीति है । यह भेदनीति ३ तीन प्रकार की कही गई हैચન્દ્રના જે એમને સૌમ્ય આકાર હતા. જેનારને એ બહુજ વધારે ગમતે હતો. એ કમનીય હતા. રૂપ અને લાવણ્ય એમના દરેકે દરેક અંગમાંથી નીતરતું હતું. मही 'अहीण जाव सुरूवे' भरे यावत् ५४ भुपामा माव्युं छे, तेनाथी मा पाइनु महीं अः ४२वामा माव्यो छे-अहीणपडिपुण्यापंचेंदियसरीरे लक्खणवंजनगुणोववेए माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णमुजायसव्वंगसुंदरंगे ससिसोमागारे, कंते. पियदंसणे सुरूवे ।” सामदंड भेद उपप्पयाण णीतिमुप्पउत्तणयविहिन्नू ईहा हमग्गणगवेसणअत्थमत्थभइविसामए) અમે તમારા છીએ; તમે અમારા છો; આપણામાં કઈ પણ જાતને ભેદ નથી, વગેરે મીઠા વચનોથી શત્રુપક્ષને વશ કરે આ સામ ઉપાય છે. પીડિત કરીને અથવા તે ધન-ભંડારનું હરણ કરીને દુશ્મન ઉપર કાબૂ મેળવે અગરતો તેને સાવ નિર્બળ બનાવવો આ દડનીતિ છે. શત્રુપક્ષના સ્વામી તેમજ સેવકમાં જે એક બીજા તરફ है वह प्रमाण कहीगई है। શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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