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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ २ स. ५ धन्यासार्थवाही विचारः ५९१ आध्यात्मिकः=आत्मनि विचारः यावत् समुदपद्यत-अहं खलु धन्येन सार्थ वाहेन सार्द्ध बहूनि वर्षाणि तावत्-बहुवर्षपर्यन्तं शब्दस्पर्शरसरूपात्मकान् मानुष्यकान् कामभोगान् पच्चणुभवमाणी' प्रत्यनुभवन्ती-परिभुञ्जाना विहरामि-तिष्ठामि किन्तु नोचैव खलु अहं दारकंचा दारिका वा प्रजनयामि, तत्-धन्या:खलु ता अम्बा यावत् सुलब्धं खल मानुष्यकं जन्मजीवितफलं तासामम्बानां यासां मन्ये निजककुक्षिसम्भूताःस्तनदुग्धलुब्धा मधुरसमुल्लापका 'मम्मणपजंपियाई' मम्मणप्रजल्पिता:- 'मम्मण' इति स्खलत् प्रजल्पितं येषां ते 'तथा थणमूलकखदेसभागं अभिसरमाणाई' स्तनमूलकक्ष देशभागमभिसरन्तः- स्तनमूलात्-स्तनमूलभागात् कक्षदेशरूचे अज्झथिए जाव समुपजित्था) इस प्रकार यह आध्यात्मिक यावत् मनोगत संकल्प उत्पन्न हुआ कि (अहं) मैं (धन्नेण सस्थवाहेण सद्धिं) धन्य सार्थवाह के साथ (बहूणि) बहुत वर्षों से (सद्दफरिसरसगंधरूवाणि माणुस्सगाई कामभोगई पच्चणुभवमाणी विहरामि) शब्द, स्पर्श, रस, गंध, और रूप स्वरूप मनुष्यभव संबंन्धी काम भोगों को भोग रही हुई हु। (नो चेव णं अहं दारगं वा दारिगां वा पयायामि) परन्तु अभी तक मेरे न लडका ही हुआ है और न लडकी ही (ते धन्नाओ णं ताओ अम्भयाओ जाव सुलदेणं माणुस्सए मण्णे जम्मजी वियफलेतासि अम्मयाओ) अतः मैं उन माताओं को धन्य मानती हु, उन्हीं का जीवन सफल समजती हु, और यह मानती कि उन्हीने अपने मनुष्य भव सम्बधी जन्म का और जीवन का फल पाया है। (जासि णियगकुच्छिसंभूयाईथणदुद्धलुद्धयाई महुरसमुल्लावगाई मम्मणयं पियाई थणमूलकवदेसभागं धन्य सार्थवानी साथे (बहूणि वासाणि) म पोथी (सदफरिसरसगंधरूवाणि माणुस्सगाई कामभोगाई, पच्चणुभवमाणी विहसामि) શબ્દ, સ્પર્શ, રસ, ગંધ અને રૂપના મનુષ્યભવના કામલેગે ભેગવી રહી છું. (नो चेव णं अहं दारगं वा दारिगां वा पयायामि) पाए! सत्यार सुधी भारे पुत्र, पुत्री Jr थयु नथी. (तं धनाओणं ताओ अम्मयाओ जाव सुलदेणं माणुस्सए मण्णे जम्मजीवियफले तासि अम्मयाओ) ते भातायाने धन्य सभा છું, તેમના જીવનને જ સફળ માનું છું, કે જેમને મનુષ્યભાવના જન્મ अने नन सण ५ भन्या छ (जासि णियगकुच्छिसंभूयाइं थण दुद्धलुद्धयाई महुरसमुल्लावगाई मम्मणपयं पियाई थणमूल-कक्खदेसभागं अभिसरमाणाई શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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