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________________ ५९२ ज्ञाताधर्मकथागसूत्रे भागम् अभिसरन्तः सम्मुखं सञ्चरन्तः सन्तः 'मुद्धयाइ' मुग्धा:मनोहराः शिशवः 'थणयं पिबंति, स्तनजन्दग्धं पिबन्ति स्तन्यपानं कुर्वन्तीत्यर्थः । ततश्च ते 'कोमलकमलोवमेहि कोमलकमलोपमाभ्यां सुकुमालकमल. सदृशाभ्यां हस्ताभ्यां गृहीत्वा 'उच्छंगनिवेसियाई' उत्सङ्गनिवेशिताः अङ्के स्थापिताः सन्तः स्तनन्धया मातृभ्यः 'देति' ददति, किमित्याह-समुलावे' समुल्लापकान्, संजल्पान् कीदृशान् ? इत्याह-'पिए' प्रियान् प्रीति जनकान 'सुमहुरे' सुमधुरान् कर्णसुखजनकान 'पुणो पुणो मंजुलप्पभणिए' पुनः पुनर्मलप्रभणितान् वारंवारं कोमलाक्षरप्रयुक्तजल्पितान ददति प्रियमझुलभाषया भाषन्ते धन्या इत्यर्थः। 'तं' तत्-किन्तु अहं खलु 'अधन्ना' अधन्या अकृतार्था 'अपुण्णा' अपुण्या-पुण्यहीना, 'अलक्खणा'='अलक्षणा =कुलक्षणा 'अकयपुण्णा' अकृतपुण्या=न कृतं पूर्वभवे पुण्यं यया सा पूर्वभवाऽ अभिसरमाणाई मुद्धया थणयं पिबत्ति) कि जिनकी कुक्षिसे उत्पन्न स्तन के दृग्ध में लुब्ध, मीठी २तोतली बोलते हुए बालक शिशु स्तन के मूल भाग से कक्ष देश पर्यन्त सरक कर दूध पीते हैं। (तओ य कोमलकमलोवमेहि हत्थेहि गिहिऊणं उच्छंगे निवेसियाई) और माता उन्हें अपने सुकुमार तथा कमल जैसा दोनों हाथों से पकड कर उत्संग में बैठाती है। और वे स्तनन्धय-बालक (समुल्लावए देंति) उन अपनी माताओं को इस प्रकर के आलापों को देते हैं (पिए सुमहुरे पुणोर मंजुलप्पणिए) जो पोति जनक होते हैं, कर्ण सुखजनक होते हैं और जिनमें बार२ कोमल अक्षरवाली वाणी होती है । (तं अहन्न अधन्ना अपुन्ना अलक्खणा अकयपुन्ना एत्तोएगमवि न पत्ता) किन्तु मैं तो अधन्य हु', पुण्यहीत हु-कुलक्षणा हु अकृत पुग्या हुपूर्वभव में पुण्यजिसने नहीं किया मुद्धयाइं थणय पिबति) मे भानु छ भन। हरे सन्मयु, स्तन पान માટે ઉત્કંઠિત, મીઠું મીઠું અને તેતડું બેલતું બાળક સ્તને સુધી–પડખા સુધી घसी मावान दूध पीवे छे. ( तओ य कोमलकमलोवमेहि हत्थेहि गिहिक उच्छंगे निवेसिया) भने भात। तेने उभा २ मन हाथामा जयश्रीन माणमा मेसा छे. ते ॥ ५५ (समुल्लावए देंति) भातासोनी साभे सेवी रीते अदु टु मा छे छ (पिए सुमहुरे पुणो २ मंजुलप्पमणिए) જે અત્યન્ત પ્રેમ જનક હોય છે, કાનને સુખકર હોય છે. તેની વાણી કોમલ अक्षरोथी युत खाय छे. (तं अहन्न अधन्ना अपुन्ना अलक्खणा अकयपुन्ना एतो एगमवि न पता) ५ हुँत ममा छु, पुश्य हीन छु, કુલક્ષણ છું, અકૃત પુણ્ય છું, જેણે પૂર્વભવ જન્મમાં પુણ્ય કર્યો જ નથી એવી શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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