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अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ.१सूत्र. ४९ मेघमुनेः संलेखना निरूपणम् ५५१ कुर्वन्ति। ततः खलु स मेघः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य तथारूपाणां स्थविराणां अन्ति के सामायिकादीनि एकादशाङ्गानि अधीत्य बहुपतिपूर्णानि द्वादशवर्षाणि श्रामण्यपर्याय पालयित्वा मासिक्या संलेखनया आत्मानं जोषयित्वा षष्टि भक्तानि अनशनेन छेदयित्वा 'आलोइयपडिकते' आलो. चितप्रनिक्रान्ता आलोचितः गुरुसमीपे कथितो योऽतिचारः सपतिक्रान्तःपुनरकरणविषयीकृतो येन स तथा, 'उद्धिय सल्ल' उद्धृतशल्यःमायाशल्यरहितः, 'समाहिधारण कर लिया। (तएणं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अणगारस्स अगिलाए वेयावडियं करेंति) इसके बाद वे स्थविर उन भगवान अनगार मेघकुमार का अग्लान भाव से वैयावृत्त्य करने में लग गये। (तएणं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूवाणं अंतिए सामाइयमाइयाइं एक्कारसअंगाई अहिन्जिता बहुपडिपुन्नाइ दुवालसवरिसाई सामन्नपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसित्ता सहि भत्ताई अणसणाए, छेदित्ता आलोइयपडिक्कते उद्वियसल्ले समाहिपत्तेआणुपुत्वे गं कालगए) इसके बाद वे मेघकुमार कि जिन्होंने अनगार श्रमण भगवान् महावीर के तथा रूप स्थाविरों के पास सामायिक आदि ग्यारह अंगों को पढ लिया है वह प्रतिपूर्ण-ठीक-१२ बारहवर्ष तक श्रामण्य पर्याय को पाल कर एक मास की संलेखना से अपने आपको कृश कर साठ भक्तों को अनशन द्वारा छेद कर गुरु के समीप अपने पापों की आलोचना कर तथा उनसे प्रति. क्रान्त होकर मायादि शल्यों से रहित हो कर, संकल्प विकल्पों से वर्जित संथा। धा२६ ध्या. (तएणं ते थेरा भगवंतो मेहस्स अणगारस्स अगिलाए वेयावडियं करेंति) त्या२मा ते स्थविर, भगवान मन॥२ मेघमारनी मसान साथी वैयावृत्य ४२पामा ५वा गया. (तएणं से मेहे अणगारे समणस्स भगवओ महावीरस्स तहारूचाणं थेराणं अंतिए सामाइयमाइयाई एक्कारस अंगाई अहिजित्ता बहुपडिपुन्नाई दुवालसवरिसाइं सामन्नपरियागं पाउणित्ता मासियाए संलेहणाए अप्पाणं झोसित्ता सटिभत्ताइ अणसणाए छेदित्ता आलो. ईयपडिक्कते उद्धियसल्ले संमाहिपत्ते आणुपुत्वेणं कालगए) त्या२माह मेधभार જેમણે અનગારશ્રમણ ભગવાન મહાવીરની તેમજ તથા રૂપ સ્થવિરેની પાસે સામાયિક વગેરે અગિયાર અંગેનો અભ્યાસ કરી લીધું છે, બહુ પ્રતિપૂર્ણ બાબર બાર વર્ષ સુધી શ્રમણ્ય પર્યાયને પાળીને એક મહિનાની સંખનાથી પિતાની જાતને દૂબળી બનાવી ને સાઈઠ ભકતને અનશન દ્વારા છેદીને જેમણે ગુરુની પાસે પિતાના પાપનું સ્પષ્ટીકરણ કરી લીધું છે, તેમજ તેમનાથી જેઓ પ્રતિકાંત થઈ ગયાં છે, ભય વગેરે
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧