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___ ज्ञाताधर्मकथागसूत्रे पक्षालनात, 'तीरेइ' तीरयति-पूर्णेऽपि तदवधौ स्वल्पकालावस्थानात्, 'किट्टेइ' कीर्तयति पारणादिने सूत्रानुसारेण यत् यत् कर्तव्यं तत्सर्व मया कृत'मित्येवं कीर्तनात् एवं उक्तरीत्या कायेन स्पृष्ट्वा, पालयित्वा, शोधयित्वा, तीरयित्वा, कीर्तयित्वा पुनरपि श्रमण भगवन्तं महावीरं वन्दते, नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवदत्-इच्छामि खलु हे भदन्त ! युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् चारित्ररूप मोक्षमार्ग के अनुसार, अथवा क्षयोपशमिक भाव के अनुसार 'मासिकी भिक्षुप्रतिमा' इस शब्दरूप तत्त्व के अर्थ के अनुसार समता भाव के अनुसार केवल अभिलाषमात्र से ही नहीं किन्तु काय से आराधन किया, बार बार उपयोग पूर्वक उसका परिपालन किया संरक्षण कियाअतिचाररूप पङ्क (कीचड) को प्रक्षालन करते हुय उसका संशोधन किया अवधि समाप्त होने पर भी कुछ काल तक वहां और स्थिर रहने से उसके पार को प्राप्त किया उसका कार्तन किया-'पारणा के दिन जो २ कर्तव्य होते हैं वे सब मैंने किये' इस प्रकार से उसका वर्णन किया। (सम्म कारणं फासित्ता, पालित्ता, सोहित्ता, नीरित्ता, किहित्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ, नमसइ) इस प्रकार ‘फासित्ता' कायसे उसका, स्पर्श कर पालित्ता उपयोग पूर्वक उसका पालन कर सोहिता अतिचारों का वहां से संशोधन कर 'तीरित्ता' उसके पार को प्राप्त कर और 'किद्वित्ता' उसका स्तुति कर पुनः श्रमण भगवान् की मेघकुमार मुनिराजने वंदना की नमस्कार किया (वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-इच्छामिणं भते तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए ચારિત્ર્યરૂપ મોક્ષમાર્ગ મુજબ અથવા તો ક્ષયે પશમિક મુજબ “માસિકી ભિક્ષુપ્રતિમા આ શબ્દના અર્થરૂપ તત્વ પ્રમાણે સમતાભાવ મુજબ, ફકત અભિલાષાથી જ નહિ પણ કાયથી આરાધન કર્યું વારંવાર ઉપયોગ કરતાં તેનું પાલન કર્યું, સંરક્ષણ કર્યું, અતિચારરૂપ પંક (કાદવ) નું પ્રક્ષાલન કરતાં તેનું શોધન કર્યું, અવધિની સમાપ્તિ પછી પણ થોડો વધુ વખત ત્યાં સ્થિર રહ્યા તેથી તેને પાર તે પામી શક્યા, તેનું કીર્તન કર્યું. પારણના દિવસે જે જે કર્તવ્યરૂપ કર્મ હોય છે, તે બધાં મેં કર્યા છે. આ પ્રમાણે તેનું વર્ણન કર્યું. (सम्म काएणं फासित्ता, पालित्ता, सोहित्ता, तीरित्ता, किहित्ता पुणरवि समणं भगवं महावीरं वंदइ नमसइ) मा प्रमाणे याथी तेने फासित्ताराने उपयोग पूर्व तेनु पासन शन 'सोहित्ता' मतियानु त्यांथी संशोधन ४ीने 'तीरित्ता' तेने पार पाभीन भने 'किहिता' तेनु तन रीने ५२री मुनिरा भेघमारे श्रम सवान महावीरने बहन ने नभ२४।२. ४ा. (वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧