SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 487
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ१ स ४१ मेघमुनेहस्तिभववर्णनम् ४७५ 'पानीयं पास्यामात कृत्वा-चिन्तायत्वा हस्थ' हस्त-शुण्ड प्रसारयासे, अथापिच 'ते हत्थे' ते तव हस्तःशुण्डादण्डः उदकं जलन प्रामोति, ततः खलु हे मेघ !त्वं पुनरपि 'कार्य' स्वशरोरं 'पद्धरिस्सामि' प्रत्युद्धरिष्यामि निष्का शयिष्यामीति कृत्वा विचार्य बलियतरायं' बलिकतरं गाढतरं- पंकंसि' प. महाकर्दमे 'खुत्ते' निमग्नः, 'खुत्ते' इति देशीय शब्दः, त्वं परिवारवियोग प्राणनाशशंकाशरीरकष्टायसह्य नानाविधवेदनामनुभवन्नासीरितिभावः। ततः खलु हे मेघ ! 'तुमे' त्वया तस्मिन्नेवभवे 'अन्नया कयई' अन्यदाकदाचित्= अन्यस्मिन् कस्मिश्चित् समये पूर्वम्मिन् काले इत्यर्थः, कामभोगासक्तथा 'एगे' एकः कश्चिदेकः कलभः चिरनिजढे' चिरनिदः-चिरा-बहुका लात नियूंढ:=निष्कासितः, 'गयवरजुवाणए' गजवरयुवा-तरुणो महागजः, पत्ते अंतरा चेव सेयसि विसन्ने) तोरसे भिन्न स्थान पर वर्तमान होने के कारण पानी को नही पी सके और बीच में ही उस सरोवर के महापंक में तुम निमग्न हो गये। (तत्थ णं तुम मेहा । पाणियं पास्सामि तिकट हत्थं पसारेसि) वहां पर हे मेघ ! तुमने इस विचार से कि मैं पानी प्राप्त कर पीलूगा अपने शुडादण्ड को फैलाया-(से वि य ते हत्थे उदगंनपावइ) परन्तु वह शुण्डादंड पानी नहीं पा सका-अर्थात् पानी तक नहीं पहच सका। (तएणं तुमं मेहा। पुणरवि कायं पच्चुध्दरिस्सामित्ति कटु बलियत रायं पंकसि खुत्ते) इसके बाद हे मेघ ! तुमने इस विचार से कि मैं यहां से फँसे हुए अपने शरीर को निकाल लगा ज्यों ही उठने का प्रयत्न किया कि वैसे ही तुम गाढतर कीचडमें और अधिक फस गये। (तएणं तुम मेहा। अन्नयाकयाई एगे सयाओ जुहाओ करचरण दंतमुसलमइगए पाणीयं असंपत्ते अंतरा चेव सेयंसी विसन्ने) निराश्री . स्थाने હોવાના કારણે તમારે માટે પાણી પીવું અશક્ય થઈ ગયું હતું. તમે ત્યાં સરેવરના हम इसा या हता. (तत्थणं तुम मेहा! पाणियं पास्सामिति कटु हत्थं पसारेसि.) भे! त्या मi: भूपामे तमे पाणी भेगवाना प्रयत्नमा सूने वार (से विय ते हत्थे उदगं न पावइ) पY तमारी सूट पाणी મેળવવામાં અસમર્થ જ રહી. એટલે કે પાણી સુધી તમારી સુંઢ પહોંચી શકી જ નહીં (तएणं तुमं मेहा ! पुणरवि कार्य पच्चुध्दरिस्सामित्तिकडे बलियतरायं पंकसि खुत्ते) त्या२ पछी भेध ! तमे अहम भूयी गयेसा पोताना शरीने माहार કાઢવાને વિચાર કરીને જ્યારે કાદવમાંથી મુક્ત થવા પ્રયત્ન કર્યો ત્યારે તમે કાદपभों पहलi ४२di घारे भूया गया. (तएणं तमे मेहा! अन्नया कयाई શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy