SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 486
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४७४ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे ठमाहए समाणे' पराभ्याहतः पराभूतः-योडितः सन् , भीतः, त्रस्तः, त्रासतः, उद्विग्नः, संजातभयः, सर्वतःसमन्तात् 'आधावमाणे परिधावमाणे पलायमानःप्रपलायमानः एकं च खलु महत् सर-तडाग 'अल्पोदयं' अल्पोदकं स्वल्पजलं 'पंकबहुलं' पङ्कबहुलं कर्दमप्रचुरम् 'अतित्थेणं' अतीर्थेन उन्मार्गेण पाणियं पाएउं' पानीयं पातु-पानीयपानार्थ 'ओइन्ने' अवतीर्णः गतवान् । ततः खलु हे मेघ! त्वं तीरमइगए' तौरमतिगतः तटमतिक्रान्तः पाणियं असंपत्ते' पानीयमसंमाप्तः 'अंतरो चेव' अन्तरा चैत्रमध्य एव 'सेयंसि' तस्मिन् सरोवरस्य महापङ्क विसन्ने' विषण्ण:निमग्नः । तत्र खलु हे मेघ ! त्वं जजरित हो रहाथा। अनेक प्रकार के शारीरिक या मानसिक दुःखों से तुम आक्रान्त हो रहे थे। इधर उधर भागते फिरने से खाने पीने का तुम्हारा कोई यथोचित प्रबंध नही था इस लिये तुम सदा क्षुधा सेपीडित रहा करते थे-प्यास से आकुलित बने रहते थे। बल भी क्षीण हो गया था-इसलिये अधिक दुर्बल दिखलाई पडने लगे थे, नाना चिन्ताओं से सदा तुम व्याप्त बने हुए थे, स्मृति शक्ति भी तुम्हारी क्षीण हो गई थी मैं कौन हूँ कहां घूम रहा हूँ इसका भान तुम्हें नहीं रहा था। इसलिये दिशाओं का ज्ञान तुम्हारा जाता रहा और अपने यूथ रहित होकर तुम वन की दबज्वाला के तीव्र ताप से संतप्त होते हुए उष्णतृष्णा क्षुधा पीडित होते हुए वहुत भयभीत बन गये, त्रस्त हो गये, उद्विग्न हो गये । अतः भय से इधर उधर २ बार दौडते हुए तुम एक बडे भारी तालाव में कि जिस में जल कम था और पंक बहुत था उन्मार्ग से होकर पानी पीने के लिये उतरा। (तत्थ णं तुम मेहा ।) वहां हे मेघ । तुम(तीरमइगए पाणीय असं હમેશાં તમે ભૂખથી પીડાએલા અને તરસથી વ્યાકુળ રહેતા હતા. તમારું બળ પણ નાશ પામ્યું હતું તેથી તમે વધારે દૂબળા લાગતા હતા. ઘણું જાતની ચિંતાઓથી તમે હેરાન હતા. તમારી યાદ-શક્તિ પણ નાશ પામી હતી. “હું કોણ છું? કયાં ફરી રહ્યો છું?” આ જાતની સૂધ બુધ તમારામાં રહી જ ન હતી. એટલા માટે તમારું દિશાાન નષ્ટ થઈ ગયું અને યૂથ ભ્રષ્ટ થઈને તમે વનના અગ્નિજવાળાઓના તીવ્ર તાપથી સંતપ્ત થઈને ગરમીથી તરસ્યા અને ભૂખથી પીડિત થઈને ખૂબ ભયગ્રસ્ત થઈ ગયા. ભયભીત થઈ ગયા અને ઉદ્વિગ્ન થઈ ગયા તેથી બીકથી આમતેમ વારંવાર નાસતા ફરતા તમે ઓછા પાણુંવાળા અને ખૂબજ કાદવ યુકત એક મોટા તળાવમાં ઊધે રસ્તે (ઉન્મા) थी पाणी पीना भाटे तया. (तत्थणं तुम मेहा!) हे भेध ! त्यो तमे (तीर શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy