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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ१ र ३६ मेघकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम् ४३९ वान् महावारा मघकुमारं स्वयमेव प्रव्राजयति, तत्रादौ पश्चपरमेष्ठिनमस्कार श्रावयति, तदनु--'इच्छाकारेण' इत्यादि पठित्वा तस्सुत्तरीकरणेणं' इत्यादिपाठेन क्षेत्रशुद्वयार्थ कायोत्सर्ग कारयति । तत्र मेवकुमारः कायं स्थिरीकृत्य 'इच्छाकारेणं लोगस्स द्वयं च' समौ मनसि चिन्तयति । तत्पश्चात् 'नमोअरिहंताणं' इत्यादि पठेनपूर्वकं कायोत्सर्ग पारयति । तदनन्तरं श्री भगवान् महावीर स्वामी 'लोगस्स' इत्यादिपाठं श्रावयति, ततः-'करेमि भंते' इत्यादि पाठेन-दीक्षां ग्राहयति इति भावः । तदनु पावें उपवेश्य 'सयमेव मुडावइ' स्वयमेव मुण्डयति-द्रव्यभावतः तदनु-'नमोऽत्थुणं' इति पाठं वामजानर्वीकृत्य है। (तएणं समणे भगवं महावीरे मेहं कुमारं सयमेव पवावेइ, सयमेव मुंडावेइ, सयमेव आयार जाव धम्ममाइक्खइ) इस प्रकार मेघकुमार का निवेदन सुनकर आमा भगवान् महावीर ने उन मेघकुमार को स्वयं प्रवजित किया इस में सर्व प्रथम उन्होंने पंच परमेष्ठी का नाम उन्हें सुनाया। बाद में "इच्छा कारेणं" इस पाठ को पढकर " तस्स उत्तरी करणेणं" इत्यादि पाठ के द्वारा उन्हों ने क्षेत्र विशुद्धि के लिये उनसे कायोत्सर्ग करवाया। मेघकुमारने शरीर को स्थिर करके "इच्छाकारेणं लोगस्स द्वयंच" इत्यादि पाठ का मन में चिन्तवन किया और बाद में " नमो अरिहंताणं" इत्यादि पढते हुए कायोत्सर्ग की समाप्ति की। इस के बाद श्री भगवान् महावीर स्वामीने “लोगस्स” इत्यादि पाठ उन्हें सुनाया। “करेमिभंते” इत्यादि पाठ को पढकर उन्हें दीक्षीत किया। दीक्षा अंगीकार कर चुकने के बाद प्रभुने उन्हें अपने पास बैठाकर स्वयंमुडित किया। और “नमोत्थुणं" पाठ को बाम जानु कुमारं सयमेव पवावेइ, सयमेव मुंडावइ, सयमेव आयार जाव धम्ममाइनखड़) આ પ્રમાણે મેઘકુમારની વિનંતી સાંભળીને શ્રમણ ભગવાન મહાવીરે મેઘકુમારને જાતે પ્રત્રજિત કર્યા. પ્રવ્રજિત કરતાં સૌ પહેલાં તેમણે પંચપરમેષ્ઠીના નામે મેઘકુમારને સંભળાવ્યા. ત્યાર બાદ “ફુરજા कारणं " 24t पाने मणीने “ तस्स उत्तरी कारणेणं" कोरे ५४ ॥२॥ तेभरे ક્ષેત્ર વિશુદ્ધિને માટે મેઘકુમારથી કાયોત્સર્ગ કરાવડાવ્યું. મેઘકુમારે શરીરને स्थि२ ४शने " इच्छाकारेण लोगस्स द्वयंच" वगेरे पाउनु भनमा यितन ज्यु, भने त्या२ मा "नमो अरिहंताणं " वगेरे मासता अयोस पूरा ध्या. त्या२ पछी श्री भवान महावीर स्वाभाये “लोगस्स" वगेरे ५४ मेघाभारने सनजाव्या. त्या२ पछी "करेमि भते " वगेरे ५४ द्वारा भेषभारने दीक्षित या. દીક્ષા સ્વીકાર કર્યા બાદ પ્રભુએ તેમને પિતાની પાસે બેસાડીને જાતે મુંડિત કર્યો. અને " नमोत्थणं" पाने अभी तनु :(धूट) यी ४२वावीने तेमना 43 मे શ્રી જ્ઞાતાધર્મ ક્યાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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