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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका.अ.१स. ३७ मेघकुमारदीक्षोत्सनिरूपणम् ४२९ देवानुप्रियाः ! शिष्यभिक्षाम्, ततःखलु स श्रमणो भगवान महावीरः मेघकुमारस्य मातापितृभ्यामेवमुक्तः सन् 'एयम सम्म पडिसुणे३' इमं अर्थ सम्यक प्रतिशृणोति-सर्व पिरतिलक्षणं प्रव्रज्या दानरूपं सम्यक प्रकारेण पतिश्रणोतिस्वीकरोति। ततःखलु स मेघकुमारः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य अन्तिकाद उत्तरपौरस्त्यं दिग्भागम् ईशानकोणम्, अपक्रामति गच्छति, अपक्रम्य-गत्वा. स्वयमेव आभरणमाल्यालङ्कारम् 'ओमुयइ' अवमुश्चति त्यजति ततःवल तस्य मेघकुमारस्य माता सलक्षणेन पटशाट केन आभरणमाल्यालङ्कारं प्रतीच्छति पडिच्छंतु णं देवाणुप्पिया सिस्स भिक्ख ) अतः हम आप देवानुप्रिय को शिष्य की भिक्षा देते हैं। आप इस शिष्य भिक्षा को स्वीकार करें। (तएणं से समणं भगवं महावीरं मेहस्स कुमारस्स अम्मापिऊएहि एवं वुत्ते समाणे एयमढे सम्म पडिमुणेइ ) इसके बाद वे श्रवण भगवान महावीर मेघकुमार के माता पिता से इस प्रकार कहे जाने पर मेघ. कुमार के लिये इस अर्थ की स्वीकारता प्रदान कर देते हैं--अर्थात् दे देते हैं-(तएणं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंति यायो उत्तरपुरथिमे दिसिभागे अवक्कमइ) इसके बाद वह मेघकुमार श्रमण भगवान महावीर के पास से ईशानकोण की और गया (अबक्कमित्ता समयमेव आभरणमल्लालंकारं ओमुयइ) वहां जाकर उसने अपने आप ही आभरण माला तथा अलंकारो को अपने शरीर से उतार दिया (तएणं से मेहस्स कुमारस्त माया हसलकवणेणं पडसाडएणं आभरण पडिच्छंतु ण देवाणुप्पिया सिस्सभिकावं ) मेथी तभने अभे पाशियनी HिAL आपाये छीमे तमे मा भिक्षानी स्वी४२ शे (तएणं से समणे भगवं महाचीरे मेहस्स कुमारस्स अम्मापिऊएहिं एवंवुत्ते समाणे एयमट्ट सम्भं पडिमुणेइ) त्या२ मा भेषभाना माता पिता द्वारा २मा प्रमाणे वामा આવેલા શ્રમણ ભગવાન મહાવીર મેઘકુમારને સ્વીકારે છે એટલે કે સર્વવિરતિ રૂપ પ્રવજ્યાનું દાન અમે એને આપીશું આ પ્રમાણે પિતાની અનુમતિ દર્શાવે છે. (तएण से मेहेकुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियाओ उत्तर पुरत्थिमे दिसिभागे अवक्कमइ ) त्या२ मा भेधाभार श्रभा लगवान महावी२ पासेथी शान त२३ गया. ( अवक्कमित्ता समयमेव आभरण मल्लालंकारं ओमुयइ) त्यांने मेघाभारे पातानी भणे भामण, भात तमा माशेने शरीर परथी उतारी था. (तएणं से मेहस्स कुमारस्स माया हंस શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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