________________
४२०
_ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे गुणसिलए चेइए तेणामेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता पुरिससहस्सवाहिणिओ सीयाओ पञ्चोरहइ ॥सू० ३६॥ टीका-'तएणं' इत्यादि । ततः खलु तस्य मेघकुमारस्य राजगृहस्य नगरस्य मध्यमध्येन निर्गच्छतः 'बहवे अत्यत्थिया' बहवोऽर्थार्थिनः द्रव्यार्थिनः कामत्थिया' कामार्थिनः स्वेच्छा पूरणार्थिनः यद्वा-शब्दरूपार्थिनः, 'भोगस्थिया' भोगार्थिनःगंधरसस्पर्शार्थिनः, 'लाभत्थिया' लाभार्थिन: पारितोषिकादि प्राप्त्यार्थिनः, 'किब्बिसिया' किल्बिषिका-किल्विषं पापमस्ति येषां ते पापवन्तः अनाथान्ध. पङ्गवादयः, 'करोडिया' करोटिका: कापालिकाः खर्परधारिणः इत्यर्थः 'कारवाहिया' कारवाहिकाः करं- राज्ञे देयं द्रव्य वहन्तीति,
'तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स ' इत्यादि।
टीका-(तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स ) इसके बाद जब वे मेध कुमार ( रायगिहस्स नगरस्स मज्झं मज्झेणं ) राजगृह नगर के ठीक बीचों बीच होकर (निग्गच्छमाणस्स) निकल रहे थे उस समय उन्हें ( वह वे अत्यत्थिया) अनेक अर्थाभिलाषियोंने (कामत्थिया) अनेक कामार्थियोंने--स्वेच्छा पूरणार्थियोंने-अथवा शरूप के अर्थियोंने ( भोगत्थिया) अनेक भोगार्थियोंने---गंधरस स्पर्श के अभिलाषियोंने-(लाभत्थिया) अनेक लाभार्थियोंने--पारितोषिक आदि की प्राप्ति की कामनावालोंने-- (किग्विसिया) अनेक अनाथ, अन्धे और पण आदि व्यक्तियोंने ( करोडिका) अनेक खप्परधारियोंने खप्पर धारण करने वाले भिक्षुओंने, (कारवाहिया) अनेक कारवाहिकोने--जिन पर राज्य का टेकप्त बकाया था 'तएणं तास मेहस्स कुमारस्स' इत्यादि
अर्थ (तएणं तस्स मेहस्स कुमारस्स) त्यारा भेघमारे (रायगिहस्स नगरस्स मज्झं मझेणं ) २००४ नानी 13 -यो च्य थने (निगच्छमाणस्स) ५सा२ २६२डता तेवमते तेभने (बहवे अस्थत्थिया) घा मालिसाषामाये (कामस्थिया) घशा माथी नाय पोतानी ४२छाने पूर्ण ४२वानी अभिलाषा रामना! माणुसोये ( भोगस्थिया) 4 लोगाथा मामे, मेट से ॐ ॥२ अने. २५शन मलिशाषीनामे, (लामत्थिया) घn दाम भेगवવાની ઈચ્છા રાખનારા માણસોએ –ઈનામ વગેરેને મેળવવાની ઈચ્છાવાળાઓએ, (किदिवसिया) ५ मनाथ, सांधणामी, तभ अ५ परे भाएसोय (करोडिका) घ! म-५२वारी लिमारीमामे, (कारवाहिया) घ २पाहिये थेटसे
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાગ સૂત્ર : ૦૧