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________________ ४१६ प्रभावः ज्ञधर्मकथासूत्रे ताननः = कुण्डलपरिधारणेन प्रकाशितमुख, मउडदित्तसिरए' मुकुटदीप्तशिरस्कः-मुकुटशोभितमस्तकः, 'अमहियरायतेयलच्छीए' अभ्यधिकराजतजोलक्ष्म्या - अभ्यधिकं सातिशयं राजतेजः पूर्वोपर्जितप्राप्ताधिकारस्य तेजः प्र तस्य लक्ष्मीः शोभा तथा 'दिप्पमाणे' दीप्यमानः शोभमानः सकोरंडमाल्यदाम्ना, कोरण्टपुष्पमालायुक्तेन 'परिज्जमाणेणं' ध्रियमाणेन भृत्येनेति भावः । 'छत्तेण' छत्रेण युक्तः 'सेयवरचामरेहिं' श्वेतवरचामराभ्यां 'उव्यमाणेहिं' उदयमानाभ्यां - वीज्यमानाभ्यां युक्तः 'हयगयपचरजोहकलियाए' हयगजमवरयोधकलितया, चतुरङ्गिण्या सेनया 'समणुगम्ममाणमग्गे' समनुगम्यमानमार्गःसम्= सम्यक्प्रकारेण अनुपश्चात् गम्यमानो मार्गों यस्य स मेघकुमारः यत्रत्रगुणशिलकं चैत्यम्=सुद्यते = | उद्यानं तत्रैव 'पहारेत्थ गमणाए' गमनाय प्रधा हारोत्यय सुकयरयवच्छे कुंडलोज्जोइयाणणे, मउडदित्तसिरए, अब्भरिय रायते लच्छी दिप्पमाणे सकोरेंटमल्लदामेणं छत्तेणं धरिज्जमाणेणं से यवरचामराहि उच्चमाणीहिं हयगयपवर जोहक लिया एहिं चाउरंगिणीए सेणाए समणुगम्ममाणमग्गे) इसके बाद वह मेघकुमार कि जिसका वक्षस्थल धारण किये गये हार से आनन्द पद हो रहा है मुख पहिरे हुए कुण्डल से प्रकाशित हो रहा है, मस्तक धारण किये हुए मुकुट से देदीध्यमान हो रहा है, और जो स्वयं अभयादिक राजतेज की शोभा से विशेष प्रभावशाली बना हुआ है तथा जिसके ऊपर कोरेंट पुष्प की माला से युक्त छत्र नौकर के द्वारा धारण किया गया है, और जिस पर श्वेत उत्तम दो चामर ढोरे जा रहें हैं तथा जो हय-गज एवं बहुत अधिक बलिष्ठ योद्धाओ से युक्त चतुरंगिणी सेना से अनुपम्यमान मार्ग वाला है (जेणेत्र गुणसिलए चेइए तेणेव पहारेत्थगमणाए जहाँ गुणशिलक उद्यान था उस और मउडदिशसिरए अमहियरायते यलच्छी ए दिप्पमाणे सकेारंट मल्लदामेण छतेणं धरिज्जमाणेण सेयवरचामराहिं उध्दुव्वमाणीहिं हयगयपरजोड कालियाए चारं गिणिए सेनाए समणुगम्यमाणमम्गे) ત્યાર બાદ ધારણ કરેલા હારથી શાભિત વક્ષ સ્થલ વાળા, પહેરેલા કુંડળાથી સુશોભિત માં વાળા ધારણ કરેલા મુકુટથી પ્રદીપ્ત મસ્તકવાળાઅભયાર્દિક રાજ તેજ ની શેાભાથી સ્વયં સવિશેષ પ્રભાવશીલ, નાકરે તાણેલા કારંટ પુષ્પનીમાળા યુકત છત્રવાળા, ઉત્તમ સફેદ એ ચમરાથી વીજિત થતા અને ઘેાડા હાથી, રથ વગેરેની બલવાન યાદ્ધાઓવાળી चतुरंगिली सेना लेनी चाछण यासी रही हे मेव। भेधकुमार ( जेणेत्र गुणसिलए are तेणेव पहारेत्थ गमणाए ) गुथुशीस उद्यान तरई જવા તૈયાર થયા. શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧ ---
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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