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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ १ स.३३ मेधकुमारदीक्षोत्सवनिरूपणम्__३८७ अलबर्जान निष्क्रमणप्रायोग्यान् अग्रकेशान कर्तयति ततःखलु तस्य मेघकुमा रस्य माता 'महरिहेणं' महाहेण बहुमल्येन 'हंमलवखणेणं' हंसलक्षणेन= हंसस्य लक्षणं स्वरूपं यस्य, यद्वा-हयानां लक्षणं चिह्न यत्र तेन. अत्युज्क्लेन 'पडसाडएणं' पटशाटकेन उत्तरीयवस्त्रण अग्रकेशान् ‘पडिच्छई' प्रतीच्छतितान् कतितान् अग्रकेशान् गृह्णातीत्यर्थः। प्रतीष्य सुरभिणा गन्धोदकेन प्रक्षालयति, कतितकेशान् गृहीत्वा तान् केशान मुगन्धिजलेन धावयतीत्यर्थः, प्रक्षाल्य सरसेन गोशीर्षचन्दनेन 'चच्चाओ दलयइ' चर्चा ददाति अभिषिञ्चति, चर्चा दत्वा 'सेयाए पोत्तीए' श्रेयस्या शुभतरया, श्वेतया वा पोतिकया वस्त्रखण्डेन 'बंधेर' बध्नाति, अद्धा 'रयणसमुग्गयसि' रत्नसमुगळे रत्न जटित संपुट के 'रत्न-डबूसा' इति भाषायाम्, 'पक्खिबई' पक्षिपति=निदधाति, के शों का हजामत कर दिया। (तएणं तस्स मेहम्स कुमारस्स माया महरिहेणं हंसलवणेणं पडसाडएणं अग्गकेसे पडिच्छइ ) कटे हुए मेघकुमार के उन केशों के उनकी माताने बहुमूल्यवाले तथा हंसों के जैसे उज्ज्वल अथवा हंस चिह्नबाले अपने उत्तरीय वस्त्र में ले लिया। अर्थात् उन अग्रकेशों को उसने अपने उतरीय वस्त्र के अंचल में रख लिया। (पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ) रखलेने के बाद फिर उसने उन्हें सुरभित गंधोदक से साफ किया। (पक्खालित्ता गो सीसचंदणेणं चच्चाओ दलथइ, दलि। सेयाए पोत्तीए बंधेइ ) साफ करके फिर उसने गोशीर्ष चंदन से उन्हें सिंचित किया। सिंचित करने के बाद उसने उन्हें एक सफेद वस्त्र गांठ मे छने माडी गा पा अभी नाभ्या. (तपणं तम्म मेहस्स कुमारस्स माया महरिहेणं हंसलवणेणं पउसाडएणं अग्गकेसे पडिच्छा ) पामेला भेषકુમારના વાળને તેમની માતાએ બહ કીંમતી હંસોના જેવા ઉજજવલ તથા હંસના ચિહ્નવાળા પિતાના ઉત્તરીય વસ્ત્રમાં લઈ લીધા. એટલે કે તે અગ્રકેશને તેમણે पातान उत्तरीय रखना पसभा भूटी वीघा. ( पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदए णं एक्वालेड) भूली हीचा पछी तभणे सुवासित घा४ 43 २१२७ मनाव्या. (पक्खालित्ता गोसीसचंदणेणं चच्चाओ दलयइ, दलित्ता सेयाए पोतीए बंधेइ) स्वच्छ मनावीन तभणे गोशी यहन 43 तमन सिथित अा. सिथित ४ीने तेभाणे तेमने मे स३४ वखनी सीमा यावी . (बंधित्ता रयणसमुग्गयंसि पक्खिवइ, पक्खवित्ता मंजूसाए पक्खिवह ) मांधान पछी भने એક રત્નજડિત દાબડામાં મૂક્યા અને પછી તે દાબડાને એક મંજૂષા (પેટી) માં શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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