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________________ ३८६ ३८६ - ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे लाइ चूडामणि रय णुकड मउडं पिणद्धति, पिणद्वित्ता दिव्य सुमणदामं पिणद्धति, पिणद्धित्ता दरमलयसुगंविए गंधे पिणद्वंति। तएणं तं मेहं कुमारं गठिमवेढिमपुरिमसंघाइमेण चउविहेणं मल्लेणं कप्परु. क्खगंपिव अलंकिय विभूसियं करेंति ॥सू० ३३॥ ___टीका-तएणं से' इत्यादि। ततःखलु स 'कासवए' काश्यपकः= नापितः श्रेणिकेन राज्ञा एवमुक्तः सन् ‘हट जाव हियए' हृयो यावत् हृदयः, 'पडिसुणेड' पतिश्रृणोति='तथाऽस्तु' इति कृत्वाज्ञां स्वीकरोति, पतिश्रुत्य स्वी कृत्य सुरभिणा गन्धोदकेन हस्तपादौ प्रक्षालात, प्रक्षाल्य शुद्धवस्त्रण 'मुहं मुखं 'बंधइ' बघ्नाति, बद्धा परेण प्रकृष्टेन 'जत्तेणं' यत्नेन मेघकुमारस्य चतुर 'तएणं से कासवए' इत्यादि । टीकार्थ--(तएणं से कासवए सेणिएणं रन्ना एवं वुत्ते समाणे हटे जाव हियए जाव पडिसुणेइ ) श्रेणिक राजाने जब नापित से ऐसा कहा तो वह बहुत अधिक हर्षित हुआ तथा संतुष्ट हुआ-और बोला-महाराज ! जैसी आपकी आज्ञा है मैं उसी के अनुसार कार्य करूँगा इस प्रकार (पांडसुणित्ता) राजा की आज्ञा स्वीकार कर उसने (सुरभिणा गधोदएणं हत्थपाए पक्खालेइ) सुरभी गंधोदक से अपने दोनों हाथ पैरों को धोलिया (पखालित्ता मुद्धवत्थेणं मुहं बंधइ बंधित्ता परेण जत्तेणं मेहस्स कुमारम्स चउरगुलवज्जे निक्खमण पाउग्गे अग्गकेसे कप्पेइ) धोकर फिर उसने शुद्ध वस्त्र से अपने मुखको बांधलिया। बान्धने के बाद फिर उसने मेघकुमार के चार अंगुल प्रमाण केशों को छोड़कर बाकी के सब 'त एणं से कासवए' इत्यादि टीज-तरणं से कासवए सेणिएणं रन्ना एवं बुत्त समाणे हट जाव हियए जाव पडिमुणेइ ) अणि रातो त्यारे भने । प्रमाणे ४ा त्यारे તે બહુ જ હર્ષિત તેમ જ સંતુષ્ટ થયે, અને તેણે કહ્યું–મહારાજ ! જેવી આપની आज्ञा. दुतभारी माज्ञा भुराम म ४२२. 24. प्रभा ( पडिसुणित्ता ) २०नी माज्ञा स्वाशन तेणे ( सुरभिणा गधीदएणं हत्थपाए पकवालेइ ) सुवासित थी पोताना भन्ने हाथ ५धोबीघा. ( पक्खालित्ता मुद्धपत्थएणं मुहं बंधा बंधित्ता परेण जत्तेणं मेहस्स कुमारम्स चउरंगुलवउजे निक्खमणपाउग्गे अग्गकेसे कपेइ) धाधने तेथे शुद्ध १२४ 43 पातानु મેં બાંધ્યું. બાંધ્યા પછી હજામે મેઘકુમારના ચાર આંગળ પ્રમાણ જેટલા વાળ રહેવા શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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