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________________ ३५८ ___ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे दीनवचनेन पुनःपुनर्विज्ञप्तिपूर्वककथनैश्च, अत्र विषयानुकूलाभिराख्यानादिरूपाभिश्चतुर्विधाभिर्वाग्भिरिति भावः, 'आघवित्त एवा' आख्यातुं वा, ‘पन्नवित्तए वा' प्रज्ञापयितुं वा, 'सन्नवित्तए वा' संज्ञापयितुं बा, 'विन्नवित्तए बा' विज्ञापयितुं वा, न शक्नुतः' इति पूर्वेण सम्बन्धः । यदा मातापितरौ-धारिणी देवी श्रेणिको राजा च स्वपुत्रं विषयानुकूलाभिराख्यानादिभिः प्रतिबोधयितुं-पत्रज्यातो निवर्तयितुं न शाक्नुतः स्मेतिसंक्षिप्तार्थः ताहे' तदा 'विसयपडिकूलाहिं' विषयप्रतिकूलाभिः विषयभोगविरोधि-तपःसंयमसंबन्धिनीभिः 'तपः= संयमपालनं सुदुष्कर' मित्यादिभिर्वाग्भिरित्यर्थः, संजमभउब्वेयकारियाहिं' संयमभयोद्वेगकारिकाभिः संयमपालने परीषहोपसर्गसहनप्राधान्येन तत्कृत क्लेशसंभावितभयोद्वेगप्रदर्शनीभिरित्यर्थः, 'पन्नवणाहि पन्नवेमाणा' प्रज्ञा पनाभिः प्रज्ञापयन्ती, एवं वक्ष्यमागमकारेण, प्रशादिष्टाम् उक्तवन्तौ-इदं खलु रूप प्रेम पूर्वक किये-पुनःपुन दीन वचनो से अथवा बार २ विज्ञप्तिपूर्वक कथनो से (आघवित्तए वा) कहने के लिये (पन्नवित्तए वा) प्रज्ञापना करने के लिये (सन्न वित्तएवा) अच्छी तरह समझाने के लिये (विन्न वित्तएवा) निवेदन करने के लिये (नो संचाएति) समर्थ नहीं हुए-अथोत्-- धारिणीदेवी और राजा श्रेणिक विषयानुकूल करनेवाली आख्यानादिरूप वाणियोंद्वारा मेघकुमार को जब प्रवज्याग्रहण करनेकी भावना से विचलित करने के लिये समर्थ नही हो सके (तोह) तब वे (विसयपडिकूलाहि) विषयभोग विरोधी ऐसी (पन्नवणाहि) तप संयम संबंधी वाणीयों द्वारा तपः संयम का आराधन बहुत ही दुष्कर है इत्यादिरूप वचनों द्वारा(संजमभउन्वेयकारियाहि) कि जो उसे संयम में भय तथा उद्वेग उत्पन्न कराने वाली थी (पन्नवेमाणा) समझाते हुए (एवं वयासी) इस प्रकार तेभ १ १२२ भने ५४२थी विज्ञप्ति पूर्व ४थनथी, ( आधविनए वा) हेवामा (पन्नवित्तए वा) प्रज्ञापन ४२वामा (सन्नवित्तए वा) सारी रीते समonवामां, (विन्नवित्तए वा) निवेदन ४२वामा (नो संचाएंति) ते मन्ते સફળ ન જ થયા, એટલે કે ધારિણીદેવી અને રાજા શ્રેણિકની સંસારના ક્ષણભંગુર વિષયે તરફ વાળનારી વાણી મેઘકુમારને પ્રત્રજ્યા ગ્રહણ કરવાની ભાવનાથી ચલિત ४२वाभा समर्थ न थ शी. (ताहे) त्यारे तेमा (विसयपडिकूलाहिं) विषय लो। विशेषी वी (पन्नवणाहिं ) त५ सयभनी व द्वारा त५ मिने संयमनी माराधना अत्यन्त ४४४ छ, बोरे क्यो द्वारा (संजमभउन्वेय कारियाहि )- मेघमारना सयभभा सय भने ५ उत्पन्न ४२नाश ती(पन्नवेमाणा) समानवता (एवं वयासी) l प्रमाणे 3 सायां શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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