________________
अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका अ.१सू.२ मातापितृभ्यां मेघकुमारस्य संवादः ३३७
टीका-'तुमंसि णं' इत्यादि। 'जाया !' हे जात! हे पुत्र ! त्वमसि खलु अस्माकमेकः पुत्रः, यथा-इष्ट:-इच्छापूरकः, कान्तः हृदयालादकः, पियः-विनयशीलत्वात्, मनोज्ञा=मनः प्रसादकः, मनोऽम:=मनस्यवस्थितः सकलकुटुम्बहितकरत्वात्, 'धिजे' धैर्यः-धैर्यगुणवान्, अर्शआदित्वादचू, घोरे. ऽपि कष्टे समुपस्थितेसत्यविकृतचित्तः, यद्वा कठिन कार्यसंपादनेऽपि उद्वेग. वर्जित इत्यर्थः, 'वेसासिए' वैश्वासिकः कपटरहितत्वात्, 'सम्मए' संमतःअनुकूलकार्यकरणात्, 'बहुमए' बहुमतः सर्वथा मनोनुकूलचतित्वात् 'अणुमए' अनुमतः-शत्रोरपि हितकरत्वात्, 'भंडकरंडगसमाणे' भाण्डकरण्डकस.
"तुमसि गं जाया' इत्यादि।
टीकार्थ-(जाया) हे पुत्र (तुमंसि णं अम्हे एगे पुत्ते) तुम हमारे एक ही पुत्र हो तुमही (इटे) हमारी इच्छाओं की पूर्ति करने वाले हो (कंते) तुमही हमारे हृदय को आनन्दित बनाने वाले हो (पिए) हमे संसारिक समस्त विभूतियों की अपेक्षा अधिक प्यारे हो (मणुण्णे) तुमहो हमारे चित्त को प्रसन्न करने वाले हो, (मणामे) सकल कुटुबजनों का हित तुम से होने वाला है इस लिये तुम ही हमारे मन में अवस्थित हो-अपना घर कि ये हो-(धिज्जे) घोर कष्ट आदि के उपस्थित होने पर भी तुम उससे विकृत चित्त नहीं बन सकते हो ऐसी हमें तुम से पूर्ण आशा लगी हुई है अतः तुम धैर्य गुणशाली हो (वेसासिए) तुम पर कपट चिन रहित होने के कारण हमारा पूर्ण विश्वास है (सम्मए) अनुकूल कार्यकर्ता होने से तुम ही हमें संमत हो, (बहुमए) सर्वथा तुम हमारे मन के माफिक चल रहे हो इसलिये हमें बहुतर कर संमत हो (अणुमए) 'तुमंसि जाया' इत्यादि
साथ-(जाया) पुत्र ! (तुमंसीणं अम्हे एगे पुत्ते ) तमे सभा मेन। ये पुत्र छौ, तमे १ (इटे) सभा २छायानी पूति ४२ना२ छ, (कंते) तभन्न भभारा हयने मान पाउना२ छौ. (पिउ) तमे २८ सभा। भाटे संसारना समय पैलव ४२di वधु प्रिय छ।, (मणुण्णे) तमे ४ २ममा२चित्तने प्रसन्न ४२नार छौ, (मणामे ) PAL PAIमाये मुटुमनु म तभाराथी थशे मेटवे तभे २८ समारा मनमा अवस्थित छौ, (धिज्जे) लय'४२ टना वमते ५५ तमे સહેજે વિચલિત નહિ થાઓ એવી તમારી પાસેથી અમને આશા છે, તમે ધર્ય गुणवाा छो. (वेसासिए) तमे निष्पट छ। मेटले तमा ५२ संपू विश्वास छे. (सम्मए) मनु॥ २मा२ ४२ना२ हवाथी तमे अभने समत साग छो. (बहुमए) तभै सम सभा२१ मत भा४ पता २ छो, तथा सभने तमे मई सभत छौ, (अणुमए) तमे तमा। शत्रुनु प हित ४२ छो,
શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧