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________________ ३३८ ___ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे मानः, भाण्डं-रत्नाभरणं, तस्य करण्डक-मजषा रक्षणभाजनं तत्समानः तत्स दृशः-प्रशस्तगुणगणधारक इत्यर्थः 'रयणे रत्न-रत्नमिव श्रेष्ठः, 'रयणभूए' रत्नभूतः, चिन्तामणिरत्नसदृशः सकलजनवाञ्छा पूरकत्वात् 'जीविय उस्सासए' जीवितोच्छ्वासकः जीवितं जीवन तस्मिन् उच्छवासका प्राणवायुस्वरूपः जीवनाधारत्वात्, 'हिययाणंदजणणे' हृदयाननन्दन जननः-अन्तःकरणपरमालादजनकः, 'उंबरपुप्फंवदुल्लहे सवणयाए' किमंगपुणपासणयाए' ? उदुम्बरपुष्पमिव दुर्लभः श्रवणतया किमङ्ग पुनदेर्शनतया यथा-उदुम्बर वृक्षस्य पुष्पं दृष्टमिति वचनं न कस्यापि श्रतं मया,कि पूनस्तदर्शनं तथा तव स्वरूप परेणोच्यमानं श्रोतमपि दर्लभंकि पुनस्तवदर्शनं, प्राक्तनजन्मार्जितपुण्यप्रभावादेव तवदर्शनं लभ्यते मयेति भावः, हे अङ्ग! इति मत्प्राणस्वरूपोऽस, इति भावेन स्नेहपूर्वक सम्बोधनं कृत्वा जनन्या निगदित मित्याशयः, ना खलु हे जात। वयमिच्छामः क्षणमपि तव 'विप्पतुम अपने शत्रुका भि हित कर देते हो मुझे अनुमत हो। (भंड करंडगसमाणे) प्रशस्त गुणों के धारण करने वाले होने से तुम मुझे रत्नाभरण वाले करंडक के समान हो (रयणे रयणभूए) रत्न के समान श्रेष्ठ हो तथा सकल जनो की वाञ्छा को पूर्ण करने से तुम मुझे चिन्तामणि जैसे हो (जीविय उस्मासए हिययाणंद जणणे सवणयाए उंबरपुप्फदुल्लहे) मेरे जीवन में एक प्राणवायु के संचारक हो एक तुम ही मेरे जीवन के आधार भूत हो-मेरा अन्तःकरण तुमसे ही परम आल्हाद (आनन्द) को प्राप्त करता है। जिस प्रकार उदंबर वृक्ष का पुष्प 'मैंने देखी' ऐसी बात किसी से मैंने नहीं सुनी है-तब फिर उसके देखने की बात ही क्या हो सकती हैंउसी प्रकार हे पुत्र ! तुम्हारा स्वरूप भी मैंने देखा है ऐसी बात दूसरे के द्वारा कही गई जब मुझे सुननी दुर्लभ हो रही है तो फिर (किमंग मेथी भने अनुभव छ।, (भंडकरंडगसमाणे) तमे प्रशस्त गुपने धार ४२ना२छ। तेथी २ल्लामा ४२ यानी भ त ममारे भाटे छ।, (रयणे रयण भूए) तमे २त्ननी म श्रेष्ठ छ। भने ५॥ भासोना भना२५ ५ ४२ना२॥ छी, मेसे तमे भारे भाटे यितामा छ।, (जीवियउस्सासए हियया गंदजणणे सवणयाए उंव्वर पुष्फदुल्लहे) भ॥२वनमा आवायुन। સંચારક તમે જ છે, તમે જ અમારા જીવનના આધાર છે, અમારું અંતઃકરણ તમારાથી જ આનંદિત થઈ રહ્યું છે. જેમ “ઉદંબર વૃક્ષનું પુષ્પ અમે જોયું છે” આ જાતની વાત અમે કોઈને મેંથી સાંભળી નથી ત્યારે તેને જોયાની વાત જ શી કરવી? તે જ રીતે હે પુત્ર! “તમારું સ્વરૂપ અમે જોયું છે” એવી વાત બીજાના भांथी वाटी सभारे भाटे सोमवाम दुल ही छ तो पछी (किमंग શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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