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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. अ १ सू.२८ मेघकुमारस्य भगवद्देर्शनादिनिरूपणम् ३३५ माणी' क्रन्दन्ती उच्चैःस्वरेण 'तिप्पमाणी' तेपमाना=स्वेदलालादि निःसारयन्ती 'सोयमाणी ' शोचन्ती = हृदयेन शोकं कुर्वती, 'विलवमाणी' विलपन्ती आर्तस्वरेण, मेघं कुमारम् एवं वक्ष्यमाण प्रकारेण अवादीत् = उक्तवती ॥मू.२७॥ मूलम् — तुमंसि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते इट्ठ कंते पिए मणुपणे मणामे धिजे वेसासिए सम्मए बहुमए अणुमए भंडकरंडगसमाणे रणे रणभूए जीविय उस्सासए, हिययानंदजणणे उंबर पुष्वदुहे सवणयाए किमंगपुण पासणयाए ? णो खलु जाया ! अम्हे इच्छामो खणमवि विप्पओगं सहित्तए तं भुंजाहि ताव जाया ! विपुले माणुस्सर कामभोगे जाव ताब बयं जीवामो, तओ पच्छा अहेहिं कालगएहिं परिणयवए वढियकुलवंसतंतुकज्जंमि निरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पव्वइस्ससि । तपणं से मेहकुमारे अम्मापिउहिं एवं त्ते समाणे अम्मापियरो एवं वयासी - तहेव णं तं अम्मयाओ! जवणं तुम्हे ममं एवं वदह - 'तुमंसि णं जाया ! अम्हं एगे पुत्ते तं वेब जाव निरावयक्खे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पव्व इस्स रोने लगी (कदमाणी ) बहुत जोरसे आक्रंदन करने लगी (तिप्पमाणी) उसके शरीर से पसीना निकलने लगा - मुख से इधर-उधर लार बहने लग गई, ( सोयमाणी ) इस तरह शोक करती और (विलवमाणी) आर्त स्वर से विलाप करती हुई (मेहं कुमारं एवं वयासी) मेघकुमार से इस प्रकार कहने लगी । ॥ म्रत्र २७ ॥ भांडयां (कंदमाणी ) महु भोटेथी भाईहं श्वा साभ्यां ( तिप्पमाणी ) तेभना शरीरेथी घरसेवे। बड़ेवा लाग्यो, भांभांथी साफ टपडवा सागी. ( सोयमाण) मा प्रमाणे दुःजी थतां रमने (विलवमाणी) आत स्वरे विसाय उरतां धारिणी हेवी ( मेहं कुमार एवं क्यासी) मेघकुमारने या प्रभा हेवा साभ्यां. “सूत्र “२७” શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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