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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ.स. २६ मेघकुमारस्य भगवईदर्शनादिनिरूपणम् ३२३ टीका-'तएणं से' इत्यादि । ततः खलु स मेघकुमारः श्रमणस्य भगवतो महावीरस्यान्तिके धर्म श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्टः श्रमणं भगवन्तं महावीरं 'तिक्खुतो अयं देशी शब्दः वारत्रयम् 'आयाहिणपयाहिणं' आदक्षिणंप्रदक्षिणम्-आदक्षिणम्-आदक्षिणत पाश्चात्, दक्षिणपाादारभ्य प्रदक्षिण-स्वालिपुटस्य परिभ्रमणपूर्वक ललाटे स्थापनं, 'करेइ' करोति, कृत्वा वन्दते, वन्दित्वा नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा एवमवदत्-'सदहामि णं भंते ! गिरगंथं पावयणं' श्रद्दधामि='यथार्यमिदमस्ती'त्येवं विश्वसिमि, खलु हे भगवन् नैर्ग्रन्थं निर्ग्रन्थ 'तएणं से मेहेकुमारे' इत्यादि टीका-इसके बाद से मेहेकुमारे वह मेघकुमार (समणस्स) श्रमण (भगवी) भगवान् के (अंतिए) मुखारविंद से (धम्म सोच्चा) श्रतचारित्र. रूप धर्म का व्याख्यान सुनकर (णिसम्म) और उसे हृदय में अवधारण कर (हतुट्टे) बहुत अधिक हर्षित हुआ संतुष्ट हुआ। बाद में (समणं भगवं महावीर) श्रमण भगवान महावीर को तीन बार उसने आदक्षिण प्रदक्षिण पूर्वक वंदना की। अर्थात दक्षिण पार्श्व से आरम्भ कर वाये तरफ ले जाना और फिर अंजलिपुट को घुमाते हुए जो ललाट पर स्थापित किया जाता है इसका नाम आदक्षिण प्रदक्षिण है। इस क्रिया पूर्वक की उसने प्रभु महावीर को (वंदइ) वंदना की (नमंसइ) नमस्कार किया । (वंदित्ता नमंसित्ता) वन्दना नमस्कार करके (एवं वयासी फिर उसने इस प्रकार निवेदन किया। (सदहामिणं भंते) हे भदंत ? मैं श्रद्धा करता हूं आपके (निग्गंथं पाबयण) 'तएण से मेहे कुमारे' इत्यादि। 20-(तए)ण त्या२ मा४ (से मेहेकुमारे) भेषभा२ (समणस्स) श्रमण (भगवओ) पाना (अंतिए) भुपापिंथी [धम्म सोच्चा] श्रुत यारत्र्य३५ धनु व्याज्यान Aivीन (णिसम्म) मने तेने यमा भqधार परीने ( हट्ट तुडे) मई मुश थयो भने संतुष्ट थयो. त्या२ पछी (समणं भगव महावीर) श्रवण लगवान महावीरनी शु मत तेभाणे माक्षिण प्रक्षिा पूर्व વંદના કરી એટલે કે જમણી બાજુથી શરૂ કરીને ડાબી બાજુ તરફ લઈ જવું અને પછી અંજલિપુટને ફેરવતા જે લલાટ ઉપર સ્થાપિત કરવામાં આવે છે તેનું નામ साक्षि प्रक्ष छ. • विधिथी ०४ तेभणे प्रभु मडावी२नी (वंदइ) १४॥ ४३, (नमंसह) नभ२४।२ च्या (वंदित्ता नमंसित्ता) वहन मने नमः॥२ शन ( एवं वयासी ) पछी तेभाणे २प्रमाणे ४थु (सदहामि णं भंते) महत! ई श्रद्धा ४३ छु, तमा॥ (निग्गंथं पावयणं ) मा नियन्य प्रयन 3५२ (एवं શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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