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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे सम्बन्धमवचनम्, 'एव पात्तयामिण भेते ! एवंप्रत्येाम = खलु हे भगवान् यथा भवता प्रतिबोध्यतेः तथैव जीवादिस्वरूप मस्ती' ति प्रतीतिं करोमि । रोयामिणं भंते! रोचयामि खलु हे भगवन् पीयूषधारावद् वाञ्छामि । 'अभुमिणं भंते ? निग्गंथं पावयणं' अभ्युत्तिष्ठाभि= समाराधनार्थमुद्यतो भवामि, खलु हे भगवान ! नैर्ग्रन्थं वचनम्, 'एवमेयं भंते!' 'एवमेतद् भगवन् ! एतत् प्रवचनम्, एवम् - एकान्तेन सत्यमित्यर्थः, 'तहमेयं भंते । तथ्यं = सप्रमाणम्, एतत् प्रवचनं भदन्त ! 'अवितहमेयं भंते !" अवितथं= इस निर्ग्रन्थ प्रवचन पर । ( एवं पत्तियामि भंते ) प्रतीति करता हूं आपके इस निर्ग्रन्थ प्रवचन पर । भगवान् ? आपने जिस प्रकार जीवादितत्त्व का स्वरूप समझाया है उसी तरह से वह यथार्थ है इस तरह की मेरे हृदय में पूर्ण श्रद्धा है और इसी तरह की मेरें चित्त में पूर्ण प्रतीति हो चुकी है। वह अन्यथा नहीं हैं और न अन्य था ही हो सकता है। (रोग्रामिणं भंते ) किस प्रकार संत पाणी अमृत धारा की चाहना करता है उसी तरह हे नाथ ? मैं भी संसार तप्त आपके इस निर्ग्रन्थ प्रवचन की चाहना करता हूँ । (अभ्युप्रेमिणं भंते निग्गंथ पावयणं) अतः हे भदन्त ? मैं आपके इस निर्ग्रन्थ प्रवचन की सम्यक प्रकार से आराधना करने के लिये उद्यत होता है ( एवमेयं भंते कारण आपका यह निर्ग्रन्थ प्रवचन एकान्ततः सत्य है। (तह मेयं भंते ) कारण - आपका यह निर्ग्रन्थ प्रवचन एकान्ततः सत्य | ( तह मेयं भंते ) हे भदन्त ? इस निर्ग्रन्थ प्रवचन में एकान्तततः सत्यता की प्रख्यापक कोरी मेरी श्रद्धा आदि नहीं है किन्तु इसमें प्रमाणों का बल है । ( अवितहमेयं भंते ) कारण प्रत्यक्षादि प्रमाणों से किसी भी प्रकार पत्तियामिणं भंते ) तमाश या निर्बंथ अवयन उधर प्रतीति (विश्वास) अ३ ४. હે ભગવન્ ! તમે જે રીતે જીવ વગેરે તત્ત્વાનુ સ્વરૂપ સમજાવ્યું છે, તે જ પ્રમાણે તે સત્ય છે. આની મારા હૃદયમાં પૂર્ણ શ્રદ્ધા છે અને આ પ્રકારની મારા ચિત્તમાં પૂર્ણપણે પ્રતીતિ પણ થઈ ગઈ છે. તે અન્યથા નથી અને તે અન્યથા થઈ શકે नहि. (रोयामि । भते) प्रेम संत प्राणी अमृतधारानी रछा उरे छे, तेभ હે નાથ ! સંસાર તમ હું પણુ આપના આ નિગ્રંથ પ્રવચનની ઇચ્છા કરૂ છું. ( अभ्युडेमिणं भंते निग्गंध पात्रयणं ) तेथी हे लहन्त ! तभारा निर्भय प्रवथननी आरी पेठे याशधना श्वा भाटे हुँ उद्यत थयो . ( एवमेयं भंते ) आपनु आ निर्यथ प्रक्यन अन्तत: सत्य छे. ( तहमेयं भंते ) આ નિગ્રંથ પ્રવચનમાં એકાન્તત ઃ સત્યતાને કહેનારી ફ્કત મારી नथी पशु सभां प्रभाशोनुं जण छे. ( अवितहमेयं भंते ) प्रेम डेभ ३२४ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧ हे लहन्त ! વગેરે જ प्रत्यक्ष वगेरे શ્રદ્ધા
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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