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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीकाःअ.स. २६ मेधकुमारस्य भगवईदर्शनादिनिरूपणम् ३२१ अतिमहत्याः परिषदः विवित्रं धर्म श्रुतचारित्रलक्षणम् 'आइक्खई' आख्यातिकथयति-'यथा जीवा वध्यन्ते मुच्यन्ते यथा च संकिश्यन्ते दुःखमनुमवन्ति' धर्मकथा भणितव्या यावत् परिषत् परिगता विस्तरव्याख्यानं तु मत्कृतोपा. सकदशाङ्गसूत्रस्यागारधर्मसञ्जीवन्यां टीकायां विलोकनीयम् ।।मू० २५॥ मूलम्-तएणं से मेहे कुमारे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मं सोचा णिसम्म हट्टतुटे समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ, करित्ता वंदइ, नमसइ, वंदित्ता नमंसित्ता एवं वयासी-सदहामिणं भंते! निग्गंथं पावयणं, एवं पत्तियामि गं भंते ! रोयामि गं भंते ! अब्भुटेमि णं भंते ! निग्गंथं पावयणं, एवमेयं भंते! तहमेयं भंते!, अवितहमेयं भंते! इच्छियमेयं भंते ! पडिच्छियमेयं भंते! इच्छियपडिच्छियमेयं भंते! से जहेव तं तुब्भे तीसे य महइमहालियाए परिसाए मझगए विचित्तधम्ममाईक्खइ) इसके बाद श्रमण भगवान महावीरने बडी परिषद में श्रुतचारित्ररूप धर्म का उपदेश दिया। (जहा जीवा वज्झंति मुच्चंति जहय संकिलिस्संति धम्म कहा भाणि यवा जाव परिसा पडिगया) प्रभुने उपदेश बात कहा कि जीव किस प्रकार कर्मों का बंध करते हैं और किस प्रकार मुक्त होते हैं तथा वे किस प्रकार से दुःखो का अनुभव करते हैं। इस प्रकार धर्मकथा की व्याख्या सुन कर वह आई हुई परिषदा अपने स्थान पर गइ ? इस विषय का विस्तृत व्याख्यान मेरे द्वारा कृत उपासकदांग सूत्र को आगार धर्म संजीवनी टीका से जान लेना चाहिये। ॥सू. २५।। महावीरं मेघकुमारस्स तीसे य महइमहालियाए परिसाए मजगए विचित्त धम्ममाइक्खइ) त्या२ ४ श्रम मावान महावीरे भाटी परिषद (सला) भां श्रुत या२ि-२३५ धनी ७५१२१ २ा-यो. (जहा जीवा वज्झंति मुच्चंति जहय संकिलिस्संति धम्मकहा भाणियन्या जाव परिसा पडिगया) પ્રભુએ ઉપદેશમાં કહ્યું કે જીવ કેવી રીતે કર્મોનો બંધ કરે છે અને કેવી રીતે મુકિત મેળવે છે, તેમજ તેઓ કેવી રીતે દુઃખ અનુભવે છે, આ રીતે ધર્મકથાની વ્યાખ્યા સાંભળીને તે પરિષદ્ પિતપતાના સ્થાને જતી રહી. આનું સવિસ્તૃત વ્યાખ્યાન મારી ઉપાસક દશાંગ સૂત્રની અગાર ધર્મ સંજીવની ટીકાથી જાણી લેવું જોઈએ. આ સૂત્ર ૨૫ મા શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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