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________________ ३२० ___ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे मनस एकत्रीकरणेन-चित्तैकाग्रत्वविधानेन अभिगच्छतीत्यनेन सम्बन्धः, यत्रैव श्रमणो भगवान् महावीरस्तत्रैवोपागच्छति उपागत्य श्रमणं३ त्रिकृत्वः आदक्षिण प्रदक्षिणं करोति कृत्वा वन्दते नमस्यति, वन्दित्वा नमस्यित्वा श्रमणस्य३ नात्यासन्ने नातिदूरे शुश्रूषमाणः नमस्यन् अञ्जलिपुटे कृत्वा विनयेन पयुपास्ते। ततःखलु श्रमणो भगवान् महावीरः मेघकुमारस्य तस्याश्च 'महइमहालयाए' अलंकार आदि जो अचित्त द्रव्य है उसका परित्याग नही करना, इनमें भी जो छन्त्र ख बाहन मुकुट चामर, आदिरूप जो राज्य भूति है उसका तो त्याग ही करना कहा गया है। विना सीह हुई एक शाटिका से उत्तरासंग करना भगवान को देखते ही दोनों हाथ जोडना, और चित्त की एकाग्रता करना। (जेणामेवसमणे भगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ) उस तरफ जाकर जहां भगवान् महावीर विराजमान थे वहां पहुँचे। (उवागच्छित्ता समणं भगवं महावोरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ) पहुँच कर उन्होंने श्रमण भगवान महावीर को तीन वार आदक्षिण प्रदक्षिण पूर्वक नमस्कार किया। (करित्ता बंदइ, णमंसइ) नमस्कार करके उनकी बन्दना की पुनः नमस्कार किया। (वंदित्ता णमंसित्ता) वंदना नमस्कार करके (समणस्स भगवओ महाबीरस्स नाइदृरे नच्चासन्ने सुस्मुसमाणे नमं. समाणे अंजलिउडे अभिमुहे विणएणं पज्जुवासइ) फिरवे भगवान महावीर के न अधिक पास और न अधिक दूर बडे विनय के साथ दोनों हाथ जोड कर सनमुख बैठ गथे। (तएणं समणे भगवं महावीरे मेघकुमारस्स પણ જે છત્ર, ખ, વાહન, મુકુટ, ચામર વગેરે જે રાજ્ય વિભૂતિ છે, તેમને તે ત્યાગ કરવો જ કહેવામાં આવ્યું છે. વગર સીવેલી એક શાંટિકાથી ઉત્તરાસંગ કરીને भगवानने नछन मन डाय लेउवा, भने यित्त से ४२. (जेणामेव समणे भगव महावीरे तेणामेव उबागच्छर) त्यां ने न्यां मावान महावीर पीता ता त्या पाया. ( उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पया हिणं करेइ) पहचान तेमाणे श्रमण मगवान महावीरने त्रशुवा२ मा क्षिक्षिण पूर्व वा वा२ नभ२४।२४ा. (करित्ता वंदइ, णमंसइ) नभ६४।२ शन. तेभनी ना ४२ मने नमः॥२ घ्या. (वंदित्ता णमंसित्ता) वहन भने नम२४.२ ४ीने ( समणस्स भगवओ महावीरस्स नाइदूरे नच्चासन्ने मुस्सू समाणे णमंसमारणे अंजलिउडे अभिमुहे विण एणं पज्जुवासइ) पछी તેઓ ભગવાન મહાવીરની વધારે નજીક પણ નહિ અને વધારે દૂર પણ નહિ; વળી मह नम्र सामान हाथ डीन साभे मेसी गया. (तएणं समणे भगवं શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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