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________________ अनगारधर्मामृतवर्षि टीका अ, १ सू. २३ मेधकुमारपालनादिनिरूपणम् ३०१ दानार्थम् एवं 'पकामं भीत्तुं' काम भक्तं स्व भागाथै परिमाउ' परिजायतुं दायादादीनां भ्रात्रादीनां विभागश. पदानार्थ तत्परिमाणं द्रव्यं दत्तवन्तौ इति सम्बन्धः । एवं राजकन्यकाः परिणीय ताभिः सह मेघकुमारः स्वकं भवन-मागतः। ततःखलु स मेवकुमारः 'एगमेगाएभारियाए' एकै कम्यै भायोयै 'एग. मेगं' एकाम् एकां 'हिरणकोर्डि' हिरण्यकोटी रौप्यकोटी 'दलयइ' ददाति.। एवम् - एकैकां सुवर्णकोटिं यावत् एकैकां प्रेषणकारिणीं ददाति,। अन्यच्च बिपुलं धनकनकादिकं परिभाजयितुम् 'यावत्-आसप्तमात् कुलवंश्यात् प्रकामं दानार्थ भागार्थ परिभजनार्थ च ददाति । ततःख लु सः मेघकुमारः 'उप्पि पासायवरगए' उपरिप्रासादवरगतः उत्तमराजभवनोपरिभूमौ स्थितः, 'फुटमाणेहिं व्यक्तियों के पोषण आदि में, इच्छानुसार खर्च कर सकें। अपने भोग में उसे अच्छी तरह व्यय कर सकें और हिस्सेदार अपने भाईयों में उसका उचित रीति से उसे विभक्त कर सके। इस तरह दहेज प्राप्त कर वह मेषकुमार उन नवीन परिणीत वधूओं के साथ अपने भवन पर आ गया।-(तएणं से मेहेकुमारे एगमेगाए भरियाए एगमेगं हिरण कोडिं दलयइ जाव एगमेगं ऐसणाकारिं दलयइ अण्णं च विपुलं धणकणग जाव परिभाएउ दत्रयइ) बाद में उस मेघकुमारने एक एक अपनी पत्नी के लिये उस समस्त सामग्रीमे से एक२ हिरण्य की कोटि दी। इसी तरह भेजने वाली पर्यन्त उसने उन उनवस्तुओं का उनके लिये विभाग कर वितरण कर दिया। धन, कनक आदि सबका भी विभाग कर वितरण कर दिया। कि जिससे वे अच्छी तरह उसे अपनी इच्छानुसार दानादि में लगाती रहें। (तएणं से मेहे कुमारे उप्पिपासायवरगए फुटमाणेहि मुइग. પિતાના માટે સારી રીતે ખર્ચ કરી શકે અને ભાગીદાર પિતાના ભાઈઓને પણ ગ્ય રીતે વહેંચી શકે આ રીતે પ્રતિદાન મેળવીને મેઘકુમાર નવી વધૂઓની સાથે पोताना लवनम माव्या. (तएणं से मेहेकुमारे एगमेगाए भारियाए एग मेगं हिरण्णकोडिं दलयइ जाव एगमेगं पेसणकारि दलयइ अण्णं च विपुल धणकणग जाव परिभाएउं दलयइ) त्यारा भेभारे पोतानी ४२४ पत्नी भाटे બધી સામગ્રીમાંથી એક કરેડ હિરણ્યની મુદ્રાઓ આપી. આ પ્રમાણે દહેજમાં પ્રાપ્ત થયેલી બધી વસ્તુઓને સમભાગ કરીને કનક,ધન વગેરે બધી વસ્તુઓને વહેંચી દીધી. જેથી તેઓ પણ પિતાની ઈચ્છા મુજબ દાન વગેરેમાં આપી શકે. (तएणं से मेहेकुमारे उप्पि पासायवरगए फुटमाणेहि मुइंगमस्थएहि वरत શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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