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________________ अनगारधर्मामृतवर्षि टीका अ. १ २२ मेघकुमारपालनादिनिरूपणम् २७५ तानि यौवनवयसा जागरितानि व्यक्त चेतनावन्ति कृतानि येन स तथोक्तः 'अठारसविहिप्पगारदेसीभासाविसारए' अष्टादशविधिमकारदेशीयभाषाविशारदः अष्टादशविधिकाराः प्रवृत्तिभेदाः यस्याःसा तथा तस्यां, देशीयभाषायां देशभेदेन वर्णावलिरूपाणां विशारदो निपुणः, 'गोइरइगंधव्वनटकुसले' गीतिरतिगन्धर्वनाटयकुशलः गोतिरति गन्धर्वइव नाटये कुशल:गन्धर्ववद्गीतनाटयमर्मज्ञ इत्यर्थ', 'हयजोहो' हययोधी अश्वमारुह्य युद्धशीलएवम्-'गयजोही' गजयोधी 'रहजोही' रथयोधी, 'बाहुजोही' बाहुयोधी, तथा 'बाहुप्रमहीं' बाहुपमर्दीबाहुभ्यां प्रमदनशीलः, 'अलंभोगसमत्थे' अलं. भोगसमर्थः सकल भोगसामर्थ्यवान् , 'साहसिए' साहसिका महापराक्रमशाली, 'वियाल वारो' विकालचारो-विकालेपि-रात्रावपि चरतीति विकालचारीपरम साहसिकत्वात् 'जाएबावि होत्था' जातश्चाप्यभवत चकारोऽनुक्तसमुच्चयार्थीनथा १ एक मन ये ९ अंग सुप्त जैसे बने रहते है- परंतु जब यौवन अवस्था आ जाती है तब ये सब जग जाते हैं-इनकी चेतना व्यक्त हो जाती हैं-कहने का तात्पर्य यह है कि वह मेघकुमार यौवनावस्था संपन्न हो गया-और (अट्ठारसविहिप्पगारदेसीभासाविसारए) देश भेद से १८ प्रकार का प्रवृत्ति भेदवाली देशी भाषा के जानने में विशारद बन गया (गीइरइगंधवकुसले) गंधर्व की तरह गीत नाट्य का मर्मज्ञ हो गया (हयजोही, गयजोही. रहजोही, बाहुजोही, बाहुप्प मद्दो अलं मोगसमत्थे, साहसिए, वियालचारी, जाए याविहोत्था) घोडे पर चढ कर युद्ध करने में अभ्यस्त हो चुका, गज पर चढकर युद्ध करने में अभ्यस्त हो चुका, रथ पर चढकर युद्ध करने में अभ्यस्त हो चुका, केवल बाहूओं से ही युद्ध करने में समर्थ हो चुका, बाहूओं से ही शत्रुओं के આવે છે ત્યારે આ બધાં અંગો જાગ્રત થઈ જાય છે, એમની ચેતના વ્યક્ત થઈ य छ, ४डवाना भाव ये छे , भेषभा२ नुवान थ६ गयो भने ( अट्ठारस विहिप्पगारदेसीभासाविसारए) देश मेथी १८ ४१२नी व्यव। मां प्रयुत थती देशी नापा-माने atyanvi निपुण था5 गये ( गीहरइगंधवनदृकुसले ) धनी म सात भने नायिनी भभज्ञ थ६ गयो, (हय जोही, गयजोही, रहजोहो, बाहुनोही, बाहुप्पमद्दी, अलंभोगसमत्थे, साहसिए: वियालचारी, जाए चावि होत्था) घड. 3५२ मेसीन 1 मेवानी मल्यस्त थ६ गयो, હાથી ઉપર બેસીને યુદ્ધ કરવામાં કુશળ થઈ ગયે, ભુજાઓ દ્વારા જ યુદ્ધ કરવામાં સમર્થ થઈ ગયે, બાહુઓ દ્વારા જ શત્રુઓના મર્દનમાં શકિતશાળી થઈ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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