SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 255
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका अ.१ २० मेधकुमारजन्मनिरूपणम् णम् २४३ तासां दामीत्वमपनीतवान् इत्यर्थः, तथा 'पुत्ताणुषुत्तिर्य वित्ति कप्पेइ' पुत्रानुपुत्रिका इत्ति कल्पयति पुत्रपौत्र भोगयोग्यां जीविकां ददातीत्यर्थः, कल्पयित्वाकृत्वा 'पडि 'विसज्जइ' प्रतिविसर्जयति। ततः खलु स श्रेणिको राना कौटु म्बिक-पुरुषान् शब्दयति= आयति, शब्दयित्वा आहूय एवमवदत्-वक्ष्यमाणरीत्या पुत्रजन्मोत्सवाथै कथितवान्-भो देवानुप्रियाः। राजगृहं नगरम् 'आसिय जाव परिगीयं' आसिक्त यावत परिगीतम् इह यावच्छब्देन 'आसिय संमजिओवलिन' इत्यादि, द्रष्टव्यम्, आसिक्तसंमार्जितोपलिप्तम्-आसिक्तं-जलसे. चनेन, संमार्जितं-कचरापन्यनेन, उपलिप्तं-गोमयादिना, इत्यादि तथा (सक्करित्ता सम्माणित्ता मत्थयधोयाओ करेइ) सत्कार सन्मान कर के फिर उसने उन्हें मस्तकधौत किया-अर्थातदासीपने के कृत्य से मुक्त कर दिया और (पुत्ताणुपुत्तियं वित्ति कप्पेइ) पुत्र पौत्र भोग्ययोग्य आजीविका से युक्त कर दिया। अर्थात् उन्हें इस तरह की जीविका लगादी कि जिससे उनके पुत्र पौत्र तक भी बैठेर खा सके। (कप्पित्ता पडिविसजेइ) इस तरह की उनकी व्यवस्था करके फिर राजाने उन्हें वहां से विसर्जित कर दिया। (तएणं से सेणिए राया कौडुबियपुरिसे सदावेइ) पश्चात् उन श्रेणिक राजाने कौटुम्बिक पुरुषों को बुलाया (सद्दावित्ता एवं वयासी) और बुलाकर उनसे ऐसा कहा-(खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया? रायगिहं नयरं आसिय जाव परिगीयं करेह) हे देवानुमियो ? तुम लोग शीघ्र से शोघ्र राजगृह नगर को असिक्त, संमार्जित तथा उपलिप्त करो-अर्थात जल सींचकर उसे आसिक्त करो कूडा करकट हटाकर उसे संमार्जित करो और गोमय તે અંગપરિચારિકાઓને “મસ્તક ધૌત કરી એટલે કે દાસીપણાના કામથી મુકત કરી અને (पुत्ताणु पुत्तियं वित्तिं कप्पेड) पुत्र मने पौत्र साय मावि सनावी दीधी. એટલે કે તેમને એવી આજીવિકા કરી આપી કે તેથી તેમના પુત્ર અને પત્ર સુદ્ધાં भान पूर्व मेi isi न पसार ४२री श. (कम्पित्ता पडि विसज्जेइ) All oddनी व्यवस्था ४शन २० तेभने विहाय पापी. (तएणं से सेणिए राया कौडबियपुरिसे सहावेइ) त्या२मा श्रे४ि २०-ये कौटु'५४ पुरुषाने मादाव्या. (सदावित्ता एवं बयासी) मने मादावीने ४यु (खिप्पामेव भो देवाणु प्पिया ? रापगिह नयरं आसिय जाव परिगीयं करेह) हेवानुप्रियो ? तभे જલદી રાજગૃહનગરને આસિક્ત સંમાજિત તેમજ ઉપલિપ્ત કરે એટલે કે પાણી છાંટીને તેને સિંચિત કરે, કચરો સાફ કરીને તેને સમાજિત કરે અને છાણ વગેરેથી શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy