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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे इदम् । ततः खलु स श्रेणिको राजा अभयस्य कुमारस्यान्तिके एतमर्थ श्रुत्वा निशम्य हृष्टतुष्टः सन् कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति, शब्दयित्वा एवमवदत् - क्षिप्रमेव भो देवानुप्रिय ! राजगृहं नगरं शंगाटकत्रिकचतुष्कचत्वर चतुर्मुखमहापथपथेषु आसिक्तसिक्त सुत्रिय सम्मार्जितोपलिप्तं सुगन्धवरगन्धितं गन्धवर्तिभूतं 'करे६ य' कुरुत 'कारवेह' कारयत च कृत्वा च कारयित्वा च एतामाज्ञप्तिकां प्रत्यपयत । ततःखलु ते कौटुम्बिक पुरुषा याक्त् प्रत्यर्पयन्ति = राजाज्ञया सर्वकार्य कृत्वा कारयित्वा च राज्ञः समीपे सर्व निवेदयन्ति स्म । ततःखलु स श्रेणिको धारिणीदेवी अपने अकाल दोहले की पूर्ति करलेवें । (तएणं से सेणिए राया अभयस्स कुमारस्स अंतिए एयमहं सोचा णिसम्म हट्ठतु कौटुंबियपुरि से सदावेइ) अभयकुमारद्वारा प्रकाशितइस बात को सुनकर और उसे हृदय में अवधारितकर वे श्रेणिक राजा बहुत अधिक हर्षोत्फुलचित्त हुए। बाद मेंउन्होंने कौटुम्बिक पुरूषों को बुलाया (सदावित्ता एवं वयासी) बुलाकर उनसे ऐसा कहा - ( खिप्पामेव भो देवाणुपिया रायगिहं नयरं सिंघाडग, तियचउक्क, चच्चर आसित्तसित जाव सुगंधवरगंधियं, गंधवट्टिभूयं करेह य कारवेह य) भो देवानुप्रिय ? तुमलोग बहुतशीघ्र राजगृहनगर को त्रिकोणवाले मार्ग में तीन मार्गवाले स्थान में चारमार्गो का जहां मिलान होताहैं ऐसे चत्वर में तथा चार द्वारवाले गोपुर आदि में आसिक्त सित आदि कर- श्रेष्ठ सुगन्धित द्रव्यों से गंध की वर्तीभूत बनाओ अथवा - बनवाओ । (करिता य कारवित्ता य मम एयमाणत्तियं पचपणह) जब वह इस प्रकार से हो जावे तो मुझे पीछे खबरदो। (तरणं ते काडुत्रियपुरिसा जाव पच्चपिणंति) राजा की ऐसी आज्ञा पाकर उन राजापुरुषोंने वैसा ही किया (तं त्रिणेण मम चुल्लमाउया धारिणीदेवी अकालदोहलं) तेथी भारी नाना (अधर) भाता धारिणीदेवी तेभना अाज होइहनी पूर्ति उरी से. (त एणं से सेणिए राया अभय कुमारस्स अंतिए एयमहं सोच्चा णिसम्म हट्ट तुट्ट कौडुबिय पुरिसे सहावे) अलयकुभारनी वात सांलजीने तेने दुध्यमां धारण उरीने श्रेणिए शक्त भूम ०४ हुर्ष चाभ्या त्यारमाह तेभागे औटुम्मि पुरुषाने मोहाव्या. (सद्दावित्ता) एवं वयासी) मोलवीने उठे (खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया रायगिहं नयरं કે सिंघाडगतिय, चउक्क, चच्चर, आसित, सित्त जाव सुगंधबरगंधियं गंधवहिभृय करेह य कारवेह य) हे देवानुप्रियो ! मधा नाही राजगृह नगरने त्रायुभेषुवाजा સ્થાનમાં, ચાર માર્ગીવાળા રસ્તામાં, ઘણા રસ્તાએ ભેગા થતા હોય તેવા ચત્વર (ચકલા)માં તેમજ ચાર દ્વારવાળા ગાપુર વગેરેમાં આસિક્ત સિક્ત વગેરે કરીને ઉત્તમ २२२ શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્ર ઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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