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________________ अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीकाःअ १ सू. १६ अकालमेधदोह निरूपणम् सौधर्मकल्पवासिनोऽन्तिके इममर्थ श्रुत्वा निशम्य इष्टतुष्टः स्वकात् भवनात् प्रतिनिष्कामति-निःसरति, प्रतिनिष्क्रम्य, यत्रैव श्रेणिको राजा तत्रोपागच्छति, उपागत्य करतलपरिगृहीतं शिर आवर्त मस्तकेऽअलि छत्वा एवमवदत्-एवं खलु हे तात ! मम पूर्वसंगतिकेन सौधर्मकल्पवासिना देवेन क्षिप्रमेव सजिता सविद्युत् पञ्चवर्णमेघनिनादोपशोभिता दिव्या प्राट्श्रीः विकुर्विता वैक्रियशक्त या प्रकटीकृता। 'त' तत्-तस्मात् विनयतु-पूरयत मम लघुमाता धारिणीदेवी अकाल कर लेवें ! (तएणं से अभयकुमारे तस्स पुव्वसंगइयस्स देवस्स सोहम्मकप्पवासिस्स अंतिए एयमढे सोच्चा णिसम्म हतुढे सयाओ भवणाओ पडिनिक्खमइ) इसके बाद उस पूर्वसंगतिक सौधर्मकल्पवासी देव के इस कथन को सुनकर तथा हृदय में धारण कर वह अभयकुमार हर्षितहोता हुआ अपने मकान से निकला (पडिनिक्खमित्ता जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ) और निकलकर जहा अणिक महाराज थे वहां पहुँचा। (उवागच्छित्ता करयल अंजलि कटु एवं बयासी) पहुँचकर उसने दोनों हाथों को अंजलिरूप में करके और उसे मस्तक पर चढाकरके राजाको नमस्कार किया और इस प्रकार कहा-(एवं खलु ताओ ? मम पुव्व ने गइएणं सोहम्मकप्पवासिणा देवेणं खिप्पामे व सगज्जि या सविज्जुया पंचवानमेह निनाओवसोहिया दिव्या पाउससिरी विउविया) हे तात ? मेरे पूर्वभव के मित्र सौधर्मकल्पवासी देवने शीघ्र ही सगर्जित सविद्युत् तथा पंच वर्णवाले मेधों के निनाद से उपशोभित दिव्य प्रावृषश्रीप्रकटकरदी है (तं विणेउण मम चुल्लमाउया धारिणीदेवीअकालदोहलं) अतः मेरी छं टी म ता अभयकुमारे तस्स पुवसंगइयस्स देवस्त सोहम्मकप्पवासिस्म अ नए एयमटुं सोचा णिसम्म हट्ट तुडे सयाओ भवणाओ पडिनिववमइ) त्या२माह સૌધર્મ કલ્પવાસી દેવનું આ કથન સાંભળીને તેની વાત બરાબર હદયમાં ધારણ ४३रीने समयभार अपत भने पोताना मसाथी ।२ नीच्या (पडिनिवलमित्ता जेणामेव सेणिए गया तेणामेव उवागच्छइ) अने ५७२ नीतीन 1ि01 पासे गया. (उवागच्छित्ता करयल अंजलि क एवं वयासी) त्यां ने भन्ने હાથની અંજલિ બનાવીને તેને મસ્તક ઉપર મૂકીને નમસ્કાર કર્યો અને કહ્યું – (एवं खलु ताओ? मम पुत्व संगइएणं सोहम्मकप्पवासिणा देवेणं खिप्पामेव सगजिया सविज्जुया पचवन्नमेहनिनाओवसोहिया दिव्वा पाउससिरी विउब्धिया) हुतात! भा॥ पूलवन सौधम ४६५वासी वे सही साति, સવિઘત તેમ જ પાંચરંગવાળા મેઘના ગર્જનથી સુશોભિત દિવ્ય વર્ષાકાળની શોભા પ્રકટાવી છે શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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