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________________ ज्ञाताधर्मकथाङ्गसूत्रे सीए' राजहंसीसदृश्यासलीलप्रशस्तगत्येत्यर्थः यत्रैव श्रेणिको राजा तत्रैवोपागच्छति-भूपसमीपमायाति, उपागत्य श्रेणिकं राजानं 'ताहि' ताभिः वक्ष्यमाणगुणयुक्ताभिः, 'इटाहि' इष्टाभिः इष्टार्थाभिधायिकाभिः, कंताहिं' कान्ताभिः =अभिलषणीयाभिः 'पियाहिं' प्रियाभिः प्रेमोत्पादिकाभिः 'मणुन्नाहिं' मनोज्ञाभिः =हृदयगमाभिः 'मणामाहि' मनोऽमाभिः मनोरथसाधिकाभिः 'उरालाहिं' उदाराभिः श्रेष्ठार्थसमन्विताभिः 'कल्लाणाहिं' कल्याणीमि: हितावहाभिः 'सिचाहिं' शिवाभिः निरुपद्रवाभिः, 'धन्नाहि' धन्याभिः प्रशंसनीयाभिः, 'मंगल्लाहि' माङ्गल्याभिः विघ्नविनाशिकाभिः, सरिसरियाहि' सश्रीकाभिः प्रसादमाधुर्यादिसकलवाणीगुणयुक्ताभिः 'हिययगमणि जाहि' हृदयगमनीयाभिः सुबोधत्वेन हृदय राजहंसी की सी गति से (जेणामेव सेणिए राया तेणामेव उवागच्छइ। जहां श्रेणिक राजा थे वहां जा पहुंची (उवागच्छित्ता) पहुँचकर (इटाहि) इष्ट अर्थ को सिद्ध करने वाली (कंताहि) सुन्दर (पियाहिं) प्रेम उत्पन्न करने वाली (मणुन्नाहि) हृदय को हरण करने वाली (मणामाहि) मनोरथ का सिद्ध करने वाली (उरालाहिं) श्रेष्ठ अर्थ से युक्त (कल्लाणाहि) हित दायक (सिवाहि) उपद्रव रहित (धन्नाहिं) प्रशंसनीय (मंगलाहिं) विघ्ननाशक (सस्सिरीयाहि) प्रसादमाधुर्य आदिसहित गुण (हिययगमणिज्जाहि) हृदय ग्राही (हिययपल्हायणि जाहि) हृदय को प्रमोद उत्पन्न करने वाली (मियमहररिभियगंभीरसस्सिरीयाहिं) मित-परिमित, मधुर-कर्ण-सुखकारी, रिभीत-आलापगभित गंभीर-मेघ की ध्वनि के समान गंभीर (सस्सिरीयाहिं) प्रसाद आदि गुण विशिष्ट होने से परम शोभा वाली (गिराहि) उपरोक्त गुण विशिष्टवाणी से (सेणियं) श्रेणिक राजा को (संलवतेणामेव उवागच्छद) यां श्रेणि २० ता त्यां .(उवागच्छित्ता) त्यो भने (इटाहिट मथने सिद्ध ४२नारी, (कंताहि) सुन्४२ (पियाहिं) प्रेम उत्पन्न ४२नारी, (मणुन्नाहि) इत्यने - नारी, (मणामाहि) मनोरथने पूर्ण ४२नारी, (उरालाहिं) उत्तम मर्थवानी, (कल्लाणाहिं) हित ४२नारी (सिवाहि) उपद्रव करनी (धन्नाहिं) quit enय (मंगलाहिँ) विनो न४ ४२नारी, (सस्सिरीयाहिं) प्रसाद, भाधुर्य वगेरे गुणवाणी (हिययगमणिज्जाहि) याडी (हिययपल्हायाणिजाहि) यमा प उत्पन्न ४२नारी (मियमहुरिभियगंभीरसस्सिरीयाहिं) મિત, પરિમિત, મીઠી, કર્ણ સુખદ-રિલિત આલાપ-ગભિત ગંભીર મેઘની ધ્વનિ २वी गली२, (मस्सिरीयाहि) प्रसाद वगेरे गुणोथी युतडावाथी सरस शोमावाणी (गिराहि) (५२ ४ मा गुणवाणी पाणीथी) (सेणियं रायं) श्रेणुि ने શ્રી જ્ઞાતાધર્મ કથાંગ સૂત્રઃ ૦૧
SR No.006332
Book TitleAgam 06 Ang 06 Gnatadharma Sutra Part 01 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages764
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_gyatadharmkatha
File Size45 MB
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