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________________ भगवतीसूत्रे यदेव श्यादिकं योग्यत्वात् सम्भवति पञ्चेन्द्रिय तिर्यग्योनिकानां तदेव लेश्यादिकं भणितव्यं नान्यदिति । 'मणुस्सा जहा जीवा तहेव निरवसेसं' मनुष्या यथा जीवा स्तथैव निरवशेषं जीववदेव सर्वाऽपि परिपाटी मनुष्येषु वक्तव्येति । 'वाणमंतरजोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा' असुरकुमारखदेव वानव्यन्तरज्योतिष्कवैमानिकाः क्रियावादिनो यावद्वैनयिकवादिनो भवन्तीति ॥०१॥ जीवनारकादि पञ्चविंशतितमदण्डकेषु यत् समवसरणं यत्रास्ति तत् समयसरणं विभज्य तत्र तत्रोक्तम्, अथ तेष्वेव जीयदि पञ्चविंशतितमदण्डकेषु आयुर्वधं निरूपयन्नाह - 'किरियाचाई णं भंते !' इत्यादि । मूलम् - किरियावाई णं भंते! किं नेरइयाउयं पकरेंति तिरिक्खजोणिया उयं पकरेंति ? मणुस्साउयं पकरेंति ? देवाउयं पकरेंति ? गोयमा ! नो नेरझ्याउयं पकरेंति, नो तिरिक्खजो - णियाउयं पकरेंति, मणुस्साउयंपि पकरेंति देवाउयं पिपकरेंति । तं भाणियन्व' परन्तु जीव के कथन की अपेक्षा इनके कथन में यही विशेषता जाननी चाहिये कि इन पंचिन्द्रिय तिर्यग्योनिकों को जो पद संभवित होता हो वे ही पद उनमें कहने चाहिये अन्य पद नहीं । 'मनुस्सा जहा जीवा तहेव निरवसेसं' मनुष्यों में जीव के जैसी ही समस्त परिपाटी कहनी चाहिये, 'वाणमंतर जोइसियवेमाणिया जहा असुरकुमारा' असुरकुमारों के जैसी परिपाटी वानव्यन्तरज्योतिषिक और वैमानिक इनमें कहनी चाहिये, अर्थात् ये सब क्रियावादी भी होते हैं अक्रियावादी भी होते है अज्ञानवादी भी होते हैं और वैनयिकवादी भी होते हैं इत्यादि ॥ १ ॥ 'नवर' जं अस्थि त भाणियव्व" परंतु भवना उथननी अपेक्षाथी तेखाना કથનમાં એજ વિશેષપણુ` છે કે-આ ૫'ચેન્દ્રિયતિય ગ્યેાનિકાને જે પદ્મ સભવિત થતા હાય એજ પદો તેમાં કહેવા જોઈ એ. તેથી અન્ય કહેવાના નથી. 'मस्सा जहा जीवा तदेव निरवसेसं' भनुष्योगां वना उथन अभाये • सघणु उथन डेवु लेये. 'वाणमंतर जोइसिय वेमाणिया जहा असुरकुमारा' અસુરકુમારાના સંબંધમાં જે પ્રમાણે કથન કહેલ છે, એજ પ્રમાણે વાનવ્યન્તર જ્યાતિષ્ક અને વૈમાનિકના સબધમાં કહેવુ' જોઇએ. અર્થાત્ આ બધા ક્રિયાવાદી પણ હાય છે, અક્રિયાવાદી પણ હાય છે, અને વૈનચિકવાદી પણ હાય છે. તે સમજવુ’. ાસૢ૦૧।। શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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