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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श०३७ भ. श.१ कृ.कृ.त्रीन्द्रियजीवोत्पातः ६१५ तयः । 'ठिई जहन्नेणं एक समयं स्थितिर्जघन्येन एकसमयप्रमाणा 'उकोसेणं एगूणवन्नं राइदियाई उत्कर्षेण एकोनपश्चाशत् रात्रि दिवानि, 'सेसं तहेब' शेष. मवगाहनास्थित्यतिरिक्त सर्व द्वीन्द्रियशतदेव त्रीन्द्रियशतकेऽपि ज्ञातव्यम् 'सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति' तदेवं भदन्त ! तदेवं भदन्त ! इति । ॥ इति श्रीन्द्रियमहायुग्वशतानि समाप्तानि ॥३७-१२॥ ॥ सप्तत्रिंशत्तमं शतकं समाप्तम् ॥३७॥ उत्कृष्ट अवगाहना तीन कोश की है । 'ठिई जहन्नेण एक समय' एगूणवन्न राइंदियाई तथा स्थिति जघन्य से एक समय की है और उत्कृष्ट ४९ दिक रातकी है। 'सेस तहेव' अवगाहना एवं स्थिति से अतिरिक्त और उपपात आदि का कथन द्वीन्द्रिय शतक के जैसा ही है 'सेवं भंते ! सेव भते ! त्ति' हे भदन्त ! जैसा आपने यह कहा है यह सब सर्वथा सत्य ही है २ । इस प्रकार कहकर गौतमने प्रभुश्री को वन्दना की और नमस्कार किया वन्दना नमस्कार कर फिर वे संयम और तप से आत्मा को भावित करते हुए अपने स्थान पर विराजमान हो गये। ॥३७ वां शतक समाप्त ॥ Grtथा साना नी छे, 'ठिई जहण्णेण एकक समय सक्कोसेण एगूणवन्न राईदियाई तथा स्थिति धन्यथी से समयनी छ, भने 6ष्टथी ४६ सागपन्यास लिसरातनी छे. 'सेस तहेव' सपालनासने स्थिति। કથન શિવાય બાકીના ઉ૫પાત વિગેરે સંબંધી કથન બે ઈન્દ્રિયવાળા જીના શતકમાં કહ્યા પ્રમાણે જ છે. 'सेव भते ! सेव भते ! त्ति' है सावन मा५ हैवानुप्रिये मात्र ઈન્દ્રિયવાળા જીના સંબંધમાં જે પ્રમાણેનું કથન કર્યું છે તે સર્વથા સત્ય જ છે. હે ભગવન આ૫ દેવાનુપ્રિયનું કથન સર્વથા સત્ય જ છે. આ પ્રમાણે કહીને ગૌતમસ્વામીએ પ્રભુશ્રીને વંદના કરી નમસ્કાર કર્યા વંદના નમસ્કાર કરીને તે પછી સંયમ અને તપથી પિતાના આત્માને ભાવિત કરતા થકા પિતાના સ્થાન પર બિરાજમાન થયા. સૂ૦૧ સાડત્રીસમું શતક સમાપ્ત ૩૭ શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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