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________________ प्रमेयचन्द्रिका टीका श.२९ उ.१ सू०१ पापकर्म संपादननिष्ठापननिरूपणम् ३५ भास्थापयन् समकमेव न्यस्थापयन् ‘एवं जहेब जीवाणं तहेव भाणियन्वं जाव अणागारोवउत्ता' एवं यथैव जीवानां तथैव भणितव्यं यावदनारकारोपयुक्ताः, सामान्यतो जीवप्रकरणे येन प्रकारेण कथितं प्रश्नोत्तरादिकं तेनैव क्रमग नारक जीवप्रकरणेऽपि सर्व प्रश्नोत्तरादिकं ज्ञातव्यम् , यावदनाकारोपयुक्तपकरणम् । सलेश्यनारकमधिकृत्य चतुर्भङ्गा वक्तव्याः कृष्णलेश्यनारकमधिकृत्य चतुर्भङ्गी वक्तव्या यावदनाकारोपयोगयुक्तनारकमधिकृत्य सामान्यजीवदण्डकवदेव सर्वत्र पदेषु चतुर्भङ्गी वक्तव्या। 'एवं जाव वेमाणियाणं' एवं यावद्वैमानिकानाम् एवं यथा नारकदण्डके लेश्यादिद्वाराणि अनाकारोपयोगान्तानि पदान्याश्रित्य चतुकरते हैं। 'एवं जहेव जीवाणं तहेव भाणियन्वं जाव अणागारोवउत्ता' इस प्रकार से जैसे कथन जीव के सम्बन्ध में किया गया है-वैसा ही समस्त कथन नैरयिकों के सम्बन्ध में भी यावत् अनाकारोपयुक्त नैरयिक पद तक समझना चाहिये । अर्थात्-सामान्य जीव के प्रकरण में जिस प्रकार से प्रश्नोत्तरादिक कहा गया है उसी प्रकार से नारक जीव प्रकरण में भी सब प्रश्नोत्तर आदिक जानना चाहिये। और यह कथन यावत् अनाकारोपयुक्त प्रकरण तक समझना चाहिये । सवेश्य नारक को लेकर चतुर्भगी कृष्णलेश्य नारक को लेकर चतुर्भगी, यावत् अनाकारोपयुक्त नारक को लेकर चतुभंगी सामान्य जीव दण्डक के जैसी समस्त पदों में कहनी चाहिये, 'एवं जाव वेमाणियाणं' जिस प्रकार से नारक दण्डक में लेश्यादिद्वार से लेकर अनाकारोपयोग तक के पदों को आश्रित करके चतुर्भगी प्रकट की गई है उसी प्रकार से तनामन्त पशु मेडी साथे २४ ४२ छ. १ 'एवजहेव जीवाणं तहेव भाणियन्त्र जाव अणागारोव उत्ता' मा प्रभाए रीत ना समयमा ४थन छ, એજ પ્રમાણે સઘળું કથન નૈરયિકના સંબંધમાં પણ યાવત્ અનાકારપયુક્ત નૈરયિક પદ સુધી સમજી લેવું. અર્થાત્ સામાન્ય જીવન પ્રકરણમાં જે પ્રમાણે પ્રશ્નોત્તર વિગેરે કહ્યા છે, એજ પ્રમાણે નારક જીવ પ્રકરણમાં પણ પ્રશ્નોત્તરે સમજી લેવા. અને આ સઘળું કથન યાવતુ આનાકારે પગના પ્રકરણ સુધીનું અહિયાં સમજવું. લેચ્છાવાળા નારકને લઈને ચાર ભં, કૃષ્ણલેશ્યાવાળા નારકે ને લઈને ચાર ભાગે, યાવત અનાકારપગવાળા નારક ને લઈને ચાર ભેગે સામાન્ય દંડકમાં प्रभारी सघ ५मा सभरवा. 'एव जाव वेमाणियाणं' प्रभो ना२४ ના દંડકમાં લેશ્યા વિગેરે દ્વારથી લઈને અનાકારે પગ સુધીના પદેને આશ્રય કરીને ચાર ભંગે કહ્યા છે, એ જ પ્રમાણે એક ઈદ્રિયવાળા પૃથ્વી શ્રી ભગવતી સૂત્ર : ૧૭
SR No.006331
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Part 17 Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGhasilal Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1972
Total Pages803
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_bhagwati
File Size45 MB
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